होटलों में मानचित्र, मॉक ड्रिल व मिलेट मेनू
प्लास्टिक बंद, काँच अनिवार्य
पर्यटन सुधार पर बड़ा फोकस,
चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि । कलेक्ट्रेट सभागार में जिलाधिकारी पुलकित गर्ग की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में जनपद के होटलों के संचालन, स्वच्छता, मिलेट्स उत्पादों के प्रोत्साहन, अग्निशमन इंतजाम और मानचित्र अनुमोदन जैसी महत्वपूर्ण व्यवस्थाओं पर विस्तार से चर्चा की गई। जिलाधिकारी ने कहा कि चित्रकूट में पर्यटन की अपार संभावनाएँ हैं और प्रतिदिन बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं, इसलिए आवश्यक है कि होटल परिसर साफ-सुथरे, सुरक्षित और स्थानीय पहचान से जुड़े हों। उन्होंने होटल व्यवसायियों से कहा कि प्लास्टिक बोतलें हटाकर काँच की बोतलों का उपयोग करें, होटल परिसर में झूले या छोटे पार्क विकसित कर पर्यटकों को बेहतर अनुभव दें तथा साबुन-टूथपेस्ट जैसे उत्पादों की पैकिंग में प्लास्टिक के स्थान पर कागजी थैलियों का उपयोग करें। जिलाधिकारी ने
स्पष्ट किया कि सभी होटल नगर पालिका के साथ समन्वय रखते हुए सूखे और गीले कचरे का नियमित निस्तारण सुनिश्चित करें। गीले कचरे को खाद बनाकर खेतों और पार्कों में उपयोग करने या बेचने की सुविधा भी सुझाई गई। विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण के अंतर्गत आने वाले सभी होटलों को स्वीकृत मानचित्र के अनुसार ही संचालन का निर्देश दिया गया है, अन्यथा निर्धारित समय के बाद कार्रवाई होगी। अग्निशमन विभाग को सभी होटलों में फायर इक्विपमेंट और नियमित मॉक ड्रिल सुनिश्चित करवाने का निर्देश दिया गया। खाद्य सुरक्षा अधिकारी को खाद्य मानकों के पालन की निगरानी और मिलेट्स आधारित व्यंजनों को बढ़ावा देने की योजना तैयार करने के निर्देश दिए गए। साथ ही होटल संचालकों का एक व्हाट्सऐप समूह बनाया जाएगा ताकि निर्देश और सुझाव तुरंत साझा हो सकें। जिलाधिकारी ने कहा कि होटल स्थानीय कलाकृतियों को प्रदर्शित करें, अपने मेनू में मिलेट्स उत्पाद शामिल करें और आगामी मिलेट महोत्सव में यही मेनू लॉन्च किया जाएगा। स्वच्छता प्रतियोगिता भी आयोजित होगी और श्रेष्ठ तीन होटलों को पुरस्कृत किया जाएगा।
होटलों की मनमानी व बदसलूकी सवालों के घेरे में
कुछ लोगों का कहना है कि प्रशासन ने बैठक में मानक, मिलेट्स और साफ-सफाई की लंबी सूची तो जारी कर दी, लेकिन असली मुद्दों पर चुप्पी अब भी जस की तस है। होटल संचालकों की मनमानी, बदसलूकी और कई बार खुलेआम दबंगई की शिकायतें वर्षों से उठती रही हैं, पर इनके लिए न कोई टोल-फ्री नंबर जारी हुआ न ही कोई अलग शिकायत तंत्र बनाया गया। पीड़ित ग्राहक अक्सर मन मसोसकर रह जाते हैं और जिले की छवि धूमिल होती है। सवाल है कि स्टाफ को व्यवहार की बुनियादी शिष्टता कौन सिखाएगा? जब तक इन जमीनी समस्याओं पर ठोस कदम नहीं लिए जाते, तब तक केवल दिशानिर्देशों से तस्वीर बदलने की उम्मीद मुश्किल है।
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