बड़े आक्रामक तरीके से फैलती है घास
बांदा, के एस दुबे । गाजर घास जागरूकता सप्ताह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के आवाहन पर खरपतवार प्रबंधन निदेशालय द्वारा प्रत्येक वर्ष 16 से 22 अगस्त तक चलाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों में गाजर घास से होने वाले नुकसान और उस नुक्सान से बचाव के प्रति जागरूक करना होता है। इसी क्रम में कृषि विश्वविद्यालय में अभियान का आगाज 16 अगस्त को सस्य विज्ञान विभाग के प्राध्यापकों एवं 100 से अधिक छात्रों द्वारा महाविद्यालय परिसर से गाजर घास को उखाड़ कर हुआ। गाजर घास (पार्थेनियम) या चटक चांदनी एक एक वर्षीय शाकीय पौधा है, जो बड़े आक्रामक तरीके से फैलती है। इसकी पत्तियां असामान्य रूप से गाजर की पत्ती की तरह होती हैं। यह हर तरह के वातावरण में तेजी से उग कर फसलों के साथ-साथ मनुष्य और पशुओं के लिए भी गंभीर समस्या बन जाता है। इसकी भयावता को देखते हुए विश्व विद्यालय के कुलपति डा. एनपी सिंह ने किसानो, ग्रामीणों, छात्रों एवं सभी नागरिकों से अपील की है कि इसे समय रहते नष्ट करने के लिए हैं। सभी को सामूहिक प्रयास करना चाहिए, जिससे इसके नुकसान से बचा जा सके। इस खरपतवार के सम्पर्क में आने से एग्जिमा, एलर्जी,
गाजर घास जागरूकता सप्ताह के दौरान मौजूद छात्र |
बुखार, दमा व नजला जैसी घातक बीमारियां हो जाती हैं। इसे खाने से पशुओं में कई रोग हो जाते हैं। इसके लगातार संर्पक में आने से मनुष्यों में डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा आदि की बीमारियां हो जाती हैं। पशुओं के लिए भी यह खतरनाक है। दुधारू पशुओं के दूध में कड़वाहट आने लगती है। कृषि विश्वविद्यालय में चल रहे अखिल भारतीय समन्वित खरपतवार प्रबंधन शोध परियोजना के अन्वेषक डा. दिनेश साह के अनुसार इसका प्रकोप खाद्यान्न, फसलों में भी देखा गया है। इसकी वजह से फसलों की पैदावार 30-40 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इस विनाशकारी खरपतवार को समय रहते नियंत्रण में किया जाना चाहिए। इसकी रोकथाम के लिए यांत्रिक, रासायनिक व जैविक विधियों का उपयोग किया जाता है। अगस्त माह में इसका प्रकोप सबसे अधिक होता है। इस माह में इसको नष्ट करना सबसे प्रभावी होता है। इस समय गाजर घास एक सामाजिक समस्या बन गई है। इसलिए इसे सामूहिक प्रयास से ही रोका जा सकता है। सभी को अपने घर, कालोनी, गांव, कार्यालय आदि स्थानों से इसे हटाने के लिए सामूहिक प्रयास करना चाहिए। डा. साहा ने बताया कि फूल आने से पहले या फूल आने की अवस्था में इसे उखाड़ कर फेंक देना चाहिए, ताकि पौधे में बीज बनने से रोका जा सके।
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