मोदी और योगी की जनसभाएं नहीं दे सकीं दो बार की विजेता पार्टी को जीत की संजीवनी
फतेहपुर, मो. शमशाद । संसदीय चुनाव के इतिहास में हैट्रिक मारने का सपना किसी भी दल का अभी तक पूरा नहीं हो सका है। भाजपा उम्मीदवार साध्वी निरंजन ज्योति इस चुनाव में तीसरी जीत की लाइन पर थीं लेकिन सपा के प्रत्याशी नरेश उत्तम पटेल, उनकी विनिंग ट्रैक को रोकने में कामयाब रहे। इससे पहले यह मौका कांग्रेस व जनता दल को मिला था लेकिन यहां की सियासी पिच ने इसकी इजाजत नहंी दी। वर्ष 1957 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के अंसार हरवानी ने जीत हासिल की थी। 1962 के चुनाव में यहां की जनता ने निर्दल गौरीशंकर को चुना। 1967 के चुनाव में कांग्रेस से संतबक्श सिंह विजयी हुए। 1971 के चुनाव में भी सिंह चुनाव जीतने में कामयाब रहे। 1977 के चुनाव में संतबक्श को तीसरी बार मौका दिया गया लेकिन भारतीय लोकदल प्रत्याशी बशीर अहमद से चुनाव हार गए। 1980 के चुनाव में कांग्रेस फिर लौटी। इस चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे हरिकृष्ण शास्त्री ने जनता पार्टी सेक्युलर के लियाकत हुसैन को शिकस्त दी। 1984 के चुनाव में भी हरिकृष्ण के
भाजपा प्रत्याशी साध्वी निरंजन ज्योति। |
हाथ बाजी लगी और उन्होंने लोकदल से यह चुनाव लडने वाले लियाकत को परास्त किया। 1989 के चुनाव में हरिकृष्ण को हैट्रिक के लिए मैदान में उतारा गया लेकिन राजा मांडा की आंधी के आगे उनकी एक न चली। यह चुनाव वीपी सिंह ने जीता। 1991 के चुनाव में भी विश्वनाथ प्रताप सिंह का जादू चला और उन्होंने भाजपा के विजय सचान को हरा दिया। 1996 के चुनाव में भाजपा को एक और हार नसीब हुई। यह चुनाव बसपा के विशभंर प्रसाद निषाद ने भजपा के महेंद्र प्रताप नारायन सिंह से जीता। इसके बाद 1998 के चुनाव में भाजपा के डाॅ अशोक पटेल ने बसपा के विशंभर प्रसाद निषाद को पटकनी देकर चुनाव जीता। साल भर बाद हुए मध्यावधि चुनाव में भी अशोक को ही यहां की जनता ने पंसद किया। इस चुनाव में बसपा के सूर्यबली निषाद चुनाव हार गए। वर्ष 2004 में बसपा का एक और जादू चला। बसपा उम्मीदवार महेंद्र प्रसाद निषाद ने राकेश सचान को हराकर बसपा की सियासी सफलता रोक दी। 2009 में सपा को यहां से पहली सफलता मिली। राकेश सचान ने बसपा उम्मीदवार महेंद्र प्रसाद निषाद से यह सीट छीन ली। इसके बाद 2014 व 2019 के चुनाव में भाजपा की सांध्वी निरंजन ज्योति को कामयाबी मिली। ऐसे में उन पर सदियों पुराने हैट्रिक न लगने के मिथक को तोडने का जो ख्वाब संजोया गया था। वो बदले समीकरण की जद में आकर धराशाई होकर रह गया।ं ं
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