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Thursday, November 21, 2024

राम-भरत संवाद सुनकर श्रोताओं के छलक पड़े आंसू

रामलीला मैदान में श्रीराम कथा का सातवां दिन

अयोध्या से आए रामहृदय दास कर रहे कथा बखान

बांदा, के एस दुबे । रामलीला मैदान में आयोजित श्रीराम कथा के सातवें दिन गुरुवार को अयोध्या से आए कथावाचक रामहृदय दास महाराज ने राम और भरत संवाद का बखान किया। यह संवाद सुनकर श्रोताओं की आंखों से आंसू छलक आए। भरत ने अपने माता को कोसते हुए कहा माता भी कुमाता हो सकती है, यह सोंचा नहीं था। कथावाचक रामहृदय दास महाराज जी के द्वारा अयोध्या से श्री राम के 14 वर्ष वनवास यात्रा के बारे में भरत के मामा घर से आने के बाद सीधे माता के कैकई और राम भैया को ढूंढते हुए उनके कक्ष में जाते हैं। उन्हें इसका आभास तक नहीं होने दिया कि उनके प्राण प्रिय भैया और भाभी 14 वर्ष के बनवास को अयोध्या से निकल गए। जानकारी होते ही वे रोते बिलखते और कैकई माता को कोसते हुए कहते हैं पुत्र कुपुत्र हो सकता है मगर माता

व्यास गद्दी की आरती उतारते सत्यदेव त्रिपाठी और रजनी त्रिपाठी।

कुमाता नहीं होती। इस बात को तुमने सिद्ध किया है माता कुमाता होती है। यह कलंक यह पाप मेरे सर पर लगा। लोग क्या कहेंगे। भरत ने अपने भाई को राजगद्दी के लिए बनवास करा दिया। तभी कौशल्या और सुमित्रा दोनों भरत को समझाती है कि पिताजी अब इस दुनिया में नहीं रहे। आओ उनका अंतिम संस्कार कर भैया को ढूंढने जाएंगे। राजा दशरथ की मृत्यु की खबर सुनकर भरत रोने लगते हैं। कर्म पूरा कर अयोध्या से अपनी तीनों मां के साथ अपने भाई को वापस लाने के लिए निकल पड़ते हैं। पीछे-पीछे प्रजा चल पड़े। निषाद राज से जानकारी लेकर भरत अपने माताओं के साथ चित्रकूट पर्वत पर जाते हैं। जहां लक्ष्मण जंगल से लकड़ियां चुन रहे थे। जैसे ही चक्रवर्ती सेना और भरत को आते देखा। आग बबूला होकर राम के पास आते हैं और कहते हैं कि भरत बड़ी सेना के साथ हमारी ओर बढ़ रहा है। तभी राम मुस्कुराते हुए कहते हैं ठहर जाओ। अनुज भरत को आने तो दो। भरत राम के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगते हैं। फिर राम गले से लगाते हैं। भरत मिलाप के बाद तीनों माताओं का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं और माता सीता भी अपनी तीनों सास के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेती हैं। उसके बाद भरत पिता के बारे में राम से कहते हैं कि अब हमारे बीच पिता श्री नहीं रहे यह शब्द सुनकर श्री राम और सीता लक्ष्मण व्याकुल हो शोकाकुल रहने के बाद राम को अपने साथ ले जाने के लिए भरत मिन्नतें करते हैं। मंत्री सुमंत और प्रजा गण बार-बार उन्हें अपने साथ जाने के लिए मनाते हैं। मगर श्री राम कहते हैं कि पिता के दिए हुए वचन का मर्यादा नहीं टूटे। इसके लिए हमें यहां रहने की अनुमति दें। रघुकुल रीति सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई। यह कहकर लेने आए सभी लोगों को चुप करा देते हैं मगर भरत मानने के लिए तैयार नहीं होते हैं। तब राम ने कहा प्रजा हित के लिए तुम्हें जाओ, अयोध्या के प्रजा जनों को देखना है। साथ में माताओं का भी दायित्व निर्वाह करना है। भरत ने श्रीराम के चरण पादुका को अपने सिर पर उठाकर आंखों में अश्रु के साथ वहां से विदा होते हैं। 14 वर्ष तक श्री राम के चरण पादुका को अयोध्या के राज सिंहासन पर रखकर खुद जमीन पर चटाई बिछाकर सन्यासी का जीवन व्यतीत करते हुए राजपाट संभालते हैं। कथा के दौरान बड़े ही उदास और व्याकुल मनसे श्रीराम सीताराम का भजन कीर्तन करते हुए महाआरती के साथ प्रसंग समाप्त किया गया। कथा को लेकर आसपास में भक्तिमय माहौल बना हुआ है। कथा परीक्षित सत्यदेव त्रिपाठी पूर्व महासचिव और रजनी त्रिपाठी रहे। इसके अलावा सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे। विजय बहादुर परिहार ने बताया कि राम कथा दोपहर भंडारे का आयोजन किया जाएगा. इस मौके पर, , नगर पालिका अध्यक्ष मालती बासु, रजत सेठ, अंकित बासु, अजित गुप्ता,दिलीप सिंह रिलायंस पेट्रोल पंप,श्याम सिंह, मनीष त्रिपाठी, अजीत गुप्ता, धीरेन्द्र सिंह, कल्याण सिंह, जगराम सिंह, प्रेम किशोर श्रीवास्तव, उमेश दया मनीष गुप्ता, संतोष गुप्ता, संत कुमार अनिल सिंह, सुरेश तिवारी ,बीके सिंह , शैलेन्द्र सिंह लाला भाई, कोआपरेटिव बैंक अध्यक्ष पंकज अग्रवाल की उपस्थिति रही।


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