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Friday, January 10, 2025

मकर संक्रान्ति 14 जनवरी

सूर्य के मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण कहलाता है। शास्त्रानुसार उत्तरायण देवताओं का दिन है। सूर्य के मकर राशि के प्रवेश को मकर संक्रान्ति कहते है। मकर संक्रान्ति प्रातः सूर्योदय के बाद पुन्यकाल में पवित्र स्थानों पर स्नान दान का महत्व होता है। इस पुन्यकाल में स्नान, सूर्य उपासना , जप , अनुष्ठान, दान-दक्षिणा करते है। इस अवसर पर काले तिल, गुड़ , खिचड़ी, कम्बल, लकड़ी, वस्त्र  आदि  का दान का विशेष महत्व है। इस अवसर पर प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर महाकुंभ मेला लगेगा, पवित्र नदियों एवं गंगा सागर में  मेला लगता है। मकर संक्रांति के बाद खरमास के कारण रूके हुए मांगलिक कार्य प्रारम्भ होते है जब सूर्य देव धनु से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है इस बार मकर संक्रांति 14 जनवरी को  है। चिंताहरण पंचांग अनुसार इस वर्ष  सूर्य मकर राशि में 14 जनवरी को सुबह 8 बजकर 55  मिनट पर प्रवेश करेंगे इस दिन विष्कुम्भ योग और पुनर्वसु नक्षत्र का संयोग बन रहा है, चन्द्रमा कर्क राशि में रहेंगे  मकर राशि के सूर्य के साथ ही पुण्यकाल में स्नान व दान के बाद चूड़ा-दही व तिल खाना शुभ होगा। पुण्यकाल में स्नान के बाद तिल का होम करने और चूड़ा, तिल, मिठाई, खिचड़ी सामग्री, गर्म कपड़े दान करने व इसे ग्रहण करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। 14 जनवरी को पुण्यकाल सुबह 8:55  से सांयकाल  5:43 तक रहेगा  


मकर संक्रान्ति के साथ अनेक पौराणिक तथ्य जुड़े हुए हैं जिसमें  महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था। कहा जाता है कि आज ही के दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी। इसीलिए आज के दिन गंगा स्नान व तीर्थ स्थलों पर स्नान दान का विशेष महत्व माना गया है।
मकर संक्रान्ति पर्व उत्तर प्रदेश में खिचड़ी के नाम से , तमिल में पोंगल , राजस्थान और गुजरात में उत्तरायण , हरियाण, पंजाब में माघी और पूर्वी भारत में भोगाली बिहू  के नाम से मनाया जाता है।
ज्योतिषानुसार अगर कंुडली में सूर्य शनि का दोष है तो  मकर संक्रान्ति पर्व पर सूर्य उपासना, काले तिल दान करने  से सूर्य शनि के दोष दूर होते है

- ज्योतिषाचार्य एस0एस0 नागपाल , स्वास्तिक ज्योतिष केन्द्र, अलीगंज, लखनऊ

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