देवेश प्रताप सिंह राठौर,वरिष्ठ पत्रकार
उत्तर प्रदेश, झांसी - बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झाँसी, डॉ आदित्य नारायण समन्वयक जंतु विज्ञान विभाग द्वारा सर्प दंश मृत्यु विहीन भारत के लिए एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया जिसमे सर्प दंश से होने वाली मृत्यु से बचने हेतु मुख्य वक्ता प्रोफेसर कृष्ण कुमार शर्मा, पूर्व कुलपति महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर, राजस्थान ने बताया कि सर्पदंश से मृत्यु तक सम्भव है । लेकिन आपकी जागरूकता किसी को जीवन दे सकती हैI उन्होंने बताया कि दंश स्थान पर तीव्र जलन, तंद्रालुता, अवसाद, मिचली, वमन, अनैच्छिक मल-मूत्र-त्याग, अंगघात प्रधान लक्षण हैं और श्वसन क्रिया रुक जाने से मृत्यु हो जाती है। सर्पदंश का प्राथमिक उपचार में दंशस्थान के कुछ ऊपर और नीचे रस्सी, रबर या कपड़े से बाँध देना चाहिए लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि धमनी का रुधिर प्रवाह
धीरे हो जाये लेकिन रुके नहीं। साँप के काटे जाने पर संयम रखना चाहिये ताकि ह्रदय गति तेज न हो । साँप के काटे जाने पर जहर सीधे खून में पहुँच कर रक्त कणिकओ को नष्ट करना प्रारम्भ कर देते है, ह्रदय गति तेज होने पर जहर तुरन्त ही रक्त के माध्यम से ह्रदय में पहुँच कर उसे नुक़सान पहुँचा सकता है। झांड़-फूंक से बचें, प्रथम उपचार के बाद व्यक्ति को शीघ्र निकटतम अस्पताल या चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए इस दोरान प्रोग्राम के चीफ गेस्ट प्रोफेसर अशोक कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि सर्पदंश के प्रति जागरूकता ही जीवन की जननी है I प्रोग्राम आयोजक के रूप में डीन साइंस प्रोफेसर आर के सेनी, डॉ सचिन उपाध्याय, डॉ सत्यवीर सिंह, डॉ कौशल त्रिपाठी, डॉ धीरेन्द्र शर्मा, डॉ पूनम मेह्लोत्रा, डॉ गोरव निगन, डॉ आशुतोष दिवाकर, डॉ देवेन्द्र मणि त्रिपाठी, डॉ सर्वेन्द्र विक्रम, डॉ हेमंत कुमार, डॉ अमित तिवारी, डॉ अनिल बाबू, डॉ धर्मपाल आदि उपस्थित रहे डॉ सत्यवीर सिंह ने सभी का आभार व्यक्त किया I
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