कानपुर, संवाददाता - शिव महापुराण कथा में आज कथा व्यास पूज्य सन्त प्रतिमा प्रेम ने बताया की विवाह की सभी औपचारिकता पूर्ण होने के बाद सभी महिलाओं ने पार्वती को शिक्षा दी कि ससुराल में किस प्रकार रहना है किस प्रकार सबसे व्यवहार करना है। कुछ दिन बाद बरात के विदा का अवसर आ गया। आज विदा के समय माता पार्वती सभी परिजनों,सखियों से मिलने के बाद माता रोते हुए बता रही है कि सात फेरों के सात वचन भूल न जाना।पिता हिमाचल भोले बाबा से बेटी का हाथ देते हुए कह रहे है इसकी त्रुटियों को माफ करना। इस प्रकार शिव पार्वती की बरात विदा हुई। बाबा भोले नाथ डमरू बजाते हुए माता पार्वती के साथ कैलाश पर्वत को आ रहे है।
भोले के विहार में देवताओं ने विघ्न डालने के कारण पार्वती जी ने देवताओं को श्राप दिया कि तुम लोगों को कभी पितृ सुख प्राप्त नहीं होगा। माता पार्वती अपने सरीर के मैंल से एक गण पैदा किया। जब माता पार्वती स्नान के लिए गण को द्वार पर बैठा कर बोला कि किसी को अंदर मत आने देना । उसी समय भगवान शंकर आ गए गण के मना करने पर शंकर ने उनका सर काट दिया। मां के क्रोध से सभी देवी देवता घबडा गए। भगवान शंकर ने हाथी का सर लगा कर उसे जीवित कर दिया। उसका नाम गणेश पड़ा शिव जी ने सभी देवताओं में उन्हें सबसे श्रेष्ठ एवम प्रथम, पूज्यनीय घोषित किया। समिति के महासचिव राजेन्द्र अवस्थी ने बारातियों का स्वागत किया। शिव पार्वती के पैर पूज कर बारात को विदा किया। बरात के स्वागत में में प्रमुख रुप से श्री जयराम दुबे, श्याम बिहारी शर्मा वी के दीक्षित, राज कुमार शर्मा, शंकर लाल परशुरमपुरिया, देवेश ओझा, कृष्ण मुरारी शुक्ला, आर सी श्रीवास्तव, पूनम कुमार, रेनू अवस्थी, मोहनी बाजपेई, जयन्ति बाजपेई, सीमा शुक्ला, जया त्रिपाठी, मुन्नी अवस्थी, जया, श्वेता, अर्चना, उपासना आदि उपस्थित रहीं।
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