चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि । जब धरती की धड़कन सुनाई देने लगे, जब वसुधा की पीड़ा शब्दों में उतर आए और जब युवा मन यह संकल्प लें कि पृथ्वी मेरी माँ है, मैं उसका पुत्र हूँ- तो निश्चय ही वह दिवस सिर्फ एक तिथि नहीं रह जाता, बल्कि चेतना का उत्सव बन जाता है। चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में मंगलवार को पृथ्वी दिवस समारोह में कुछ ऐसा ही अनुभव बनकर उभरा, जहाँ पर्यावरण संरक्षण की पुकार, कर्म की भाषा में गूंजती रही। हमारी शक्ति, हमारा ग्रह- विषय पर संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के ऊर्जा एवं पर्यावरण विभाग ने जब वैश्विक चिंताओं को स्थानीय उत्तरदायित्वों से जोड़ा, तो हर चेहरा विचारमग्न और हर दिल प्रकृति के प्रति समर्पित हो उठा। कुलपति प्रो भरत मिश्रा के मार्गदर्शन व प्रो सूर्यकांत चतुर्वेदी की अध्यक्षता में हुए इस आयोजन में प्रो शशिकांत त्रिपाठी ने 2025 की वैश्विक थीम पर चर्चा
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| पृथ्वी दिवस में शपथ लेते छात्र |
करते हुए कहा कि यह समय केवल चिंतन का नहीं, क्रियान्वयन का है। इसी क्रम में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई ने पृथ्वी दिवस विशेष कार्यक्रम में कृषि संकाय की भूमि पर माटी की खुशबू के साथ भावनाओं का संगम देखने को मिला। डॉ उमेश शुक्ला ने जब पृथ्वी माँ की संकल्पना को आत्मीयता से प्रस्तुत करते हुए विद्यार्थियों को यह संकल्प दिलवाया-पृथ्वी मेरी माँ है, मैं उसका पुत्र हूँ- तो मानो प्रकृति स्वयं भी प्रसन्न हो उठी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ अशोक तिवारी, दीनदयाल शोध संस्थान, ने जब पृथ्वी दिवस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को भारतीय दृष्टिकोण से जोड़ा, तो यह स्पष्ट हो गया कि यह दिन केवल एक अंतरराष्ट्रीय आयोजन नहीं, बल्कि संवेदना और उत्तरदायित्व की साझी विरासत है।


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