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Friday, May 16, 2025

फॉलो अप- नीति आयोग की रैंकिंग को चुनौती देता चित्रकूट का पियरिया विद्यालय

सरकारी दावों की खुली पोल

कागजी कायाकल्प बनाम जमीनी जहालत

ऑपरेशन कायाकल्प बना ऑपरेशन कागज

चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि । शिक्षा क्षेत्र में हाल ही में नीति आयोग की आकांक्षी जिलों की रिपोर्ट में जिले को देशभर में आठवां स्थान प्राप्त हुआ है। सीएम योगी ने इस उपलब्धि पर ट्वीट कर सराहना की है। बीएसए के अनुसार जिले के सभी 1262 विद्यालयों में ऑपरेशन कायाकल्प के तहत व्यापक सुधार किए गए हैं, जिनमें शौचालय, डेस्क-बेंच, पेयजल, डिजिटल क्लासरूम और स्मार्ट टीवी तक की सुविधाएं शामिल हैं। उनका दावा है कि शिक्षक अब डिजिटल टेक्नोलॉजी से बच्चों को स्मार्ट शिक्षा दे रहे हैं और गांव-गांव तक गुणवत्ता वाली पढ़ाई पहुंच चुकी है। लेकिन इन तमाम सरकारी दावों व रिपोर्टों की चमक उस वक्त धुंधली पड़ जाती है जब अखण्ड भारत संदेश की टीम 13 मई को रामनगर ब्लॉक के कंपोजिट विद्यालय पियरिया कला पहुंची, तो वहां की स्थिति देखकर किसी को भी यकीन नहीं होगा कि यह वही जिला है जो शिक्षा के क्षेत्र में देश के टॉप-10 में शामिल हो गया है। स्कूल की रसोईघर की छत में इतनी गहरी दरारें हैं कि धूप व बारिश दोनों आर-पार दिखाई देती हैं। स्कूल का चारदीवारी निर्माण कार्य न सिर्फ घटिया स्तर का है, बल्कि इसकी पूरी लागत प्रधानाध्यापक ने अपने व्यक्तिगत

चित्रकूट का पियरिया विद्यालय

खाते में ट्रांसफर कर ली गई है। आरोप है कि गेट के नीचे पिलर तक गायब हैं, जिससे निर्माण की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठते हैं। बच्चों को चार महीने से रोटी नही मिली और साल भर से दूध नही मिला, फलों का कुछ पता नही। बच्चों की उपस्थिति रजिस्टर में बढ़ाकर दिखाई जा रही है। स्कूल में साफ-सफाई का घोर अभाव है, किचन के पास पानी भरा हुआ है जो हादसे को न्योता दे रहा है। ग्रामीणों की मानें तो यह विद्यालय अब शिक्षा का मंदिर नहीं बल्कि खानापूरी व भ्रष्टाचार का केंद्र बन चुका है। जब नीति आयोग की रिपोर्ट यह कहती है कि जिले के स्कूलों में डिजिटल शिक्षा दी जा रही है, तब यह सवाल है कि क्या यह रैंकिंग वास्तव में जमीनी मूल्यांकन पर आधारित है या सिर्फ कार्यालयी प्रजेंटेशन व कागजी आंकड़ों पर? क्या सरकार और प्रशासन सिर्फ उन्हीं स्कूलों को दिखाते हैं जिन्हें सजाकर रिपोर्ट के लिए प्रस्तुत किया जाता है? और यदि पियरिया विद्यालय जैसा स्कूल इस रैंकिंग के पैमाने से बाहर है, तो जिले की असली तस्वीर कितनी भयावह होगी? क्या ऑपरेशन कायाकल्प सिर्फ ऑपरेशन कागज बनकर रह गया है? और क्या इस चमकदार रैंकिंग की चकाचौंध में उन बच्चों का भविष्य कुचला जा रहा है, जिनके लिए यह सारी योजना बनाई गई थी? वहीं इस संबंध में बीईओ एनपी सिंह ने गुरूवार को बताया कि जांच करने का समय नही मिला व शुक्रवार को उनका फोन नही उठा।


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