वट सावित्री का विधि विधान पूर्वक सुहागिनों ने व्रत रखा
फतेहपुर, मो. शमशाद । हरेक साल ज्येष्ठ अमावस्या को मनाए जाने वाले वट सावित्री व्रत की आभा इस त्यौहार भी देखे बनी। सूरज की पौ फटने से पहले बरगद की पूजा के लिए महिलाओं का जत्था पहुंचना शुरू हो गया। यह सिलसिला दोपहर तक निरंतर देखने को मिलता रहा। सुहागिनों ने बरगद के पेड़ में सूत का धागा लपेटकर अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मांगा। हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का काफी खास महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि बरगद के दरख्त की ही शरण में सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे। तभी से वट सावित्री व्रत में वट यानि बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार बरगद के पेड़ में त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है। इसलिए भी इसकी पूजा का खास महत्व माना गया है। वट सावित्री व्रत के लिए महिलाओं को बरगद के पेड़ के नीचे पूजा अर्चना करते देखा गया। पूजा की थाली में रखे पकवान, फल, फूल को अर्पित करने के साथ बरगद में सूत का धागा लपेटकर पतियों की दीर्घायु की मंगल कामना की।
बरगद पर धागा लपेट कर अखंड सौभाग्यवती की कामना करतीं महिलाएं।
भाव की खाता रहा खरबूजा
फतेहपुर। वट सावित्री व्रत में फल के तौर पर खरबूजा की पूजा की अहमियत ज्यादा होने के कारण इस त्यौहार भी यह भाव की खाता रहा। जो खरबूजा दो दिन पहले 100 का 4 किलो मिल रहा था उसके दाम बढ़कर डेढ़ सौ रुपए हो गए। ठेला वाले महंगे दाम के साथ ग्राहकों से मिठास के नाम पर भाव की लेते दिखाई देते रहे।
कम होते बरगद, पूजा को लगाना पड़ा नंबर
फतेहपुर। पर्यावरण के साथ जिस तरह की छेड़छाड़ जा रही है। उसकी सच्चाई दिन-ब-दिन सामने आती जा रही है। बरगद की पूजा के लिए जिस तरह गुरुवार को महिलाओं के झुंड को इस पेड़ की तलाश में भटकना पड़ा। उसे एक बात साफ हो गई कि अगर यही हाल रहा तो डेढ़ दशक बाद, बरगद खोजना मुश्किल होगा।
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