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Monday, January 27, 2025

नेत्र चिकित्सा में योगदान के लिए डा जैन पद्मश्री से होगे सम्मानित

बधाई देने वालों का लगा तांता

चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि - परम पूज्य संत रणछोड़ दास जी महाराज द्वारा स्थापित विश्व ख्याति प्राप्त सदगुरू नेत्र चिकित्सालय के निदेशक डा बी के जैन को भारत सरकार ने पद्म श्री सम्मान नवाजने के लिए चयनित किया है इस खबर की सूचना होने पर उनके शुभ चिंतकों का बधाई देने के लिए तांता लगा हुआ है।आपको बता दे कि डॉ जैन 1974 में सदगुरू सेवा संघ जुड़े पिछले 51 वर्षों से गरीब और जरूरतमंद लोगों की आंखों की रोशनी लौटाने का काम कर रहे है।1948 में जन्मे डा जैन की प्रारंभिक शिक्षा शासकीय विद्यालय व्यंकट क्रमांक सतना में हुई इसके बाद 1968 से 1973 तक एस एस मेडिकल कॉलेज रीवा से हुई इसके बाद 1977 से 1979 तक पी जी की शिक्षा मुंबई में प्राप्त की।आपको बता दें कि अंधत्व निवारण एवं नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में सेवाकार्य के लिए विगत पांच दशकों में दर्जनों राजकीय, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। वही डॉ जैन ने इस पद्मश्री पुरूस्कार की उपलब्धि के लिए मैं परम पूज्य गुरदेव श्री रणछोड़दास जी महाराज को मुझे अपने सेवाकार्य में निमित्त चयनित करने के लिए देता हूँ साथ ही यह श्रेय मैं सदगुरु परिवार के हर बड़े से लेकर छोटे कार्यकर्ता को, जिनके प्रत्यक्ष और परोक्ष सहयोग से ही यह उपलब्धि संभव हो सकती है उन्हें प्रदान करता हूँ एवं मेरे उन लाखों-लाखों नेत्र रोगियों को जिन्हें नेत्र ज्योति मिलने पर उनके अनगिनत आशीर्वाद हमें प्राप्त हुए और उन्होंने मुझे उनकी सेवा करने का अवसर प्रदान किया मैं यह सम्मान उन सभी को समर्पित करता हूँ |


साथ ही मैं इसका श्रेय देता हूँ देश-और विदेशों से आने वाले हमारे अनेकों गुरु-भाई बहनों को जिनका अपार स्नेह और गुरुदेव के प्रति निष्ठा देखकर मुझे इस सेवाकार्य को करने के लिए निरंतर प्रेरणा देता रहता है, साथ ही मैं श्रेय देना चाहता हूँ, सदगुरु सेवा संघ ट्रस्ट के सभी ट्रस्टीगण-चेयरमैन को जिनके सहयोग और भरोसे के कारण मैं ट्रस्ट के इस सेवाकार्य में संलग्न हूँ, साथ ही इस अवसर पर मैं याद करूँ मरे पिता तुल्य मार्गदर्शक भूतपूर्व अध्यक्ष श्री अरविन्द भाई को, जिन्होंने ऊँगली पकड़ के मुझे इस नेत्रयज्ञ में चलना सिखाया इसीके साथ सभी पूज्य संतों-महंतों का जिनके आशीर्वाद और पावन चरणों का सान्निध्य हमेशा मेरा मार्गदर्शन करता रहता है एवं चित्रकूट के समस्त जनमानस को जिनका वात्सल्य मुझे सदैव प्राप्त होता रहा है साथ ही क्षेत्र के समस्त प्रशासनिक अधिकारीयों का जिनका मार्गदर्शन एवं प्रेम हमें निरंतर प्राप्त होता आ रहा है, और सबसे अंत में चित्रकूट की इस पावन-पवित्र भूमि को जिसके कण-कण में भगवान राम और माता जानकी का वास है और इसी भूमि का प्रताप है कि, मेरे जैसा सामान्य व्यक्ति से ऐसा असाधारण उपलब्धि के योग्य बन सका |

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