परंपरा व कर्तव्य निर्वहन का देते हैं संदेश
मऊ (चित्रकूट), सुखेन्द्र अग्रहरि । जब देशभर में होली के रंगों की धूम मच चुकी होती है, तब भी मऊ और आसपास के 24 गांवों में एक दिन का संयम रखा जाता है और होली का जश्न अगले दिन पूरी धूमधाम से मनाया जाता है। यह परंपरा केवल एक रीति नहीं, बल्कि संस्कार, आस्था और पूर्वजों की मान्यताओं को सहेजने का प्रतीक है। गुरुवार की रात यहां होलिका दहन किया गया, लेकिन शुक्रवार को लोग रंगों से दूरी बनाए रखते हुए बैजला की परंपरा निभाते हैं। इसके बाद शनिवार को पूरे उल्लास के साथ अबीर-गुलाल उड़ाते हुए रंगोत्सव मनाया जाएगा। मऊ व कौशांबी जनपद के इन 24 गांवों में सदियों से यह परंपरा जीवंत है। इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। वरिष्ठ पत्रकार प्रफुल्ल चंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि समय के साथ इसकी वास्तविकता धूमिल हो गई, लेकिन परंपरा और इसका संदेश आज भी जीवित है। लोगों का मानना है कि अंग्रेजी शासनकाल में मऊ के जमींदार बैजनाथ
![]() |
मऊ के बाजारो में होली की रौनक |
तिवारी का निधन ठीक होली के दिन हुआ था, जिससे पूरा इलाका शोक में डूब गया। उनकी स्मृति में गांववासियों ने यह तय किया कि रंगोत्सव अगले दिन ही मनाया जाएगा। दूसरी मान्यता के अनुसार, बैजू नामक एक प्रसिद्ध फाग गायक की अचानक मृत्यु हो गई थी, जिसके कारण गांववालों ने उस दिन रंग न खेलने का संकल्प लिया। जमींदार ने इसे परंपरा का रूप दे दिया और तब से हर साल होली के दिन संयम रखा जाता है और अगले दिन रंगों की बरसात होती है। होली के दिन जब बाकी जगहों पर लोग रंगों में सराबोर होते हैं, तब इन गांवों में सिर्फ पकवानों की खुशबू और गुलाल की तैयारियां चलती हैं। लेकिन अगले दिन, जब यह गांव रंगों में नहाते हैं, तो उल्लास और भाईचारे की एक अनोखी मिसाल पेश करते हैं। संयम और उल्लास का यह संगम ही इन गांवों की पहचान है, जहां परंपरा भी जिंदा है और पर्व भी।
प्रशासन एलर्ट
मऊ थाना प्रभारी निरीक्षक विनोद कुमार राय ने बताया कि मऊ थानांतर्गत कुल 86 जगहों पर पारंपरिक रूप से होलिका दहन का कार्यक्रम किया जाना है। लोगों से अपील करते हुए कहा है कि क्षेत्र में शांति ढंग से होली का त्यौहार मनाएं। अराजक तत्वों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। जगह जगह पर पुलिस नजर बनाए हुए है।
No comments:
Post a Comment