फतेहपुर, मो. शमशाद । विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर हमें सबको यह याद दिलाना जरूरी है कि स्वास्थ्य केवल एक शारीरिक अवस्था नहीं है, बल्कि मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक संतुलन का भी नाम है। आयुर्वेदाचार्य एवं मानसिक रोगों पर शोध कर रहे डॉ. विकास चौरसिया कहते हैं जब तक मन शांत नहीं होगा, तब तक शरीर का कोई इलाज पूर्ण नहीं माना जा सकता। डॉ. विकास का कहना है कि आयुर्वेद में स्वास्थ्य को समदोषः समाग्निश्च समधातु मलक्रियाः, प्रसन्न आत्मेन्द्रिय मनः स्वस्थ इत्यभिधीयते के रूप में परिभाषित किया गया है। यानी जब शरीर के सभी दोष, धातु और मल संतुलित हों, पाचन शक्ति अच्छी हो, इंद्रियां व मन प्रसन्न हों तभी व्यक्ति को स्वस्थ कहा जाता है। यदि आप सुबह सूर्यादय से पहले उठते हैं, नियमित योग, प्राणायाम, अभ्यंग (तेल मालिश) और उचित आहार का पालन करते हैं, तो आपका शरीर और मन दोनों दीर्घकाल तक स्वस्थ रह सकते हैं। साथ ही, ऋतु के अनुसार जीवनशैली और खानपान में बदलाव जिसे ऋतुचर्या कहा जाता है रोगों से बचाव की कुंजी है। आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में लोग मानसिक तनाव को नजरंदाज कर देते हैं लेकिन यही तनाव धीरे-धीरे
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डा0 विकास चौरसिया। |
शारीरिक रोगों को जन्म देता है। इसलिए मन को शांत रखना ज़रूरी है। नफरत, ईर्ष्या, क्रोध जैसे भाव मन को बीमार बनाते हैं। जीवन बहुत छोटा है और ये तय नहीं कि कौन कब तक हमारे साथ है इसलिए हर दिन को शांति और प्रेम से जिएं। किसी से मनमुटाव न रखें, सच्चे दिल से क्षमा करना सीखें। मन को हल्का करें, खुलकर हँसें, खुलकर जिएं। यह जीवन एक बार मिला है इसे बोझ नहीं, उत्सव बनाकर जिएं। उन्होने अपील किया कि हर व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि अपने शरीर और मन की देखभाल सिर्फ डॉक्टर की नहीं, आपकी भी जिम्मेदारी है। जागरूक रहिए, संयमित रहिए और आयुर्वेद को अपनाइए ताकि आप न केवल स्वस्थ दिखें, बल्कि भीतर से स्वस्थ महसूस भी करें।
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