इंसानियत हुई शर्मसार, वीडियो वायरल
इतिहास का काला दिन
कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति
चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि । जिले के जगतगुरू रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय में शुक्रवार को इतिहास का वह काला दिन दर्ज हो गया, जब निहत्थे, लाचार व बेबस दिव्यांग छात्रों पर सत्ता के नशे में चूर विश्वविद्यालय प्रशासन ने लाठियों की बौछार कर दी। यह मंजर किसी जलियांवाला बाग से कम नहीं था, फर्क बस इतना था कि तब अंग्रेजों ने भारतीयों पर गोली चलाई थी, आज अफसरशाही ने अपनों के जख्मों पर लाठियों से प्रहार किया। दिव्यांग छात्रों का कसूर सिर्फ इतना था कि वे अपने हक की मांग कर रहे थे- समय पर परीक्षा, परिणाम व बुनियादी सुविधाओं की। पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनकी आवाज सुनी नहीं, उन्हें कुचलने का फैसला किया। लगभग एक घंटे बाद, विश्वविद्यालय प्रशासन कुछ कर्मचारी समेत लाठियां लेकर टूट पड़े। दर्जनों दिव्यांग घायल हुए, कई छात्र-छात्राएं बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े, लेकिन उनकी चीखें भी सत्ता के पत्थर दिलों को नहीं पिघला सकीं। यह दृश्य
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| प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई के लिए दिव्यांगों का भीषण जनसमुदाय |
भारतीय लोकतंत्र व संविधान के मुंह पर एक करारा तमाचा है। क्या जिले में अब लोकतंत्र खत्म हो चुका है? क्या दिव्यांगों के लिए न्याय व मानवता जैसी कोई चीज नहीं बची? बड़ी विडंबना है कि जो सरकार दिव्यांगों के सशक्तिकरण का दावा करती है, उन्हीं के राज में दिव्यांगों की अस्मिता को सरेआम लाठियों से रौंद दिया गया। जो नेता दिव्यांगों के सबसे बड़े हमदर्द बनने का ढोंग करते हैं, आज उनकी चुप्पी सबसे बड़ी बेदर्दी बनकर सामने आई है। यह हमला न सिर्फ बच्चों के शरीर पर हुआ, बल्कि उनके सपनों, उनकी उम्मीदों व उनके आत्मसम्मान पर भी गहरी चोट पहुंची है। सवाल है-क्यों डर-डर कर जीने को मजबूर हो गए हैं दिव्यांग छात्र अपने ही विश्वविद्यालय में? क्यों प्रशासन व सत्ता दोनों मुंह फेर कर बैठे हैं? और सबसे अहम सवाल- अगर आज इस अत्याचार के खिलाफ आवाज नहीं उठाई गई, तो कल किसकी बारी होगी? चित्रकूट का यह जलियांवाला कांड सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था पर लगा एक ऐसा काला दाग है जिसे इतिहास कभी माफ नहीं करेगा। यह समय चुप है उन निहत्थे दिव्यांग बच्चों के दर्द की आवाज बनकर सत्ता के गलियारों को झकझोरने का है। वहीं प्रशासन ने जांच के नाम पर कमेटी बनाकर खानापूर्ति कर दी है।


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