मिलीभगत की मूक कब्रगाह
जमीन नहीं, जमीर धँसा है साहेब
चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि । बुधवार की रात कोरारी गांव में जब जमीन फटी, तब सिर्फ एक खदान नहीं धँसी- उस मलबे के नीचे इंसानियत, जिम्मेदारी और सिस्टम का जमीर भी दब गया। ये कोई प्राकृतिक आपदा नहीं थी, ये इंसानी लालच की वो खतरनाक बिसात थी, जिसमें तीन पोकलैंड मशीनें, एक डंपर और तीन जिंदा मजदूर दांव पर थे। आरोप लगे कि रात के सन्नाटे में खदान के भीतर चार इंची ब्लास्टिंग की जा रही थी- वो भी तब, जब नियम कहते हैं कि रात में खनन नहीं होना चाहिए। लेकिन चित्रकूट में नियम सिर्फ पोस्टरों पर हैं और जमीन के नीचे बारूद की गूंज ही हकीकत बन चुकी है। जब खदान का एक बड़ा हिस्सा भरभरा कर गिरा, तो खंड 38 में काम कर रहे मजदूर
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| मौके पर खदान में पडी मशीनें |
उसकी चपेट में आ गए। घायल मजदूरों को सतना अस्पताल भेजा गया, लेकिन सवाल वही पुराना है-कहाँ थे जिम्मेदार? क्या उन्हें नहीं पता कि यहाँ अवैध ब्लास्टिंग का खेल दिन-रात चलता है? क्या प्रशासन की आंखें सिर्फ कैमरों व समारोहों में खुलती हैं? अगर खदान में बेंचिंग होती यानी सुरक्षा के लिए तय कटाव- तो क्या ये हादसा होता? और बड़ा सवाल- रात में मजदूर खदान में क्या कर रहे थे? ग्रामीणों में आक्रोश है, लेकिन वे चुप हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि इस माफिया और प्रशासन के गठजोड़ के आगे उनकी चीखें भी मिट्टी में मिल जाती हैं। ये वही चित्रकूट है जहाँ हर हादसे के बाद कुछ दिन की चर्चा होती है, और फिर सिस्टम वैसा ही चलने लगता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं।


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