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Wednesday, April 16, 2025

विकास या विनाश? कामदगिरि पर्वत की शिलाओं पर चले बुलडोजर से हिल उठी आस्था

संतों ने रोका जेसीबी

प्रशासन से कार्य रोकने की मांग

चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि । चित्रकूट की पावन भूमि, जहां हर पत्थर में रामायण की कथा बसी है, आज वहीं विकास के नाम पर आस्था का चीरहरण हो रहा है। कामदगिरि परिक्रमा क्षेत्र में निर्माण के नाम पर पवित्र पर्वत की शिलाओं को तोड़ा जा रहा है। एमपीटी (मध्यप्रदेश टूरिज्म) के कराए जा रहे इस कार्य से न केवल धार्मिक भावना आहत हुई है, बल्कि प्रकृति और संस्कृति दोनों के साथ खिलवाड़ हो रहा है। टो वॉल के निर्माण के लिए जेसीबी से कामदगिरि पर्वत को काटा जा रहा है, जिससे कई प्राचीन शिलाएं टूट चुकी हैं। यह वही शिलाएं हैं जिन पर सदियों से साधु-संतों, श्रद्धालुओं और तीर्थयात्रियों की परिक्रमा चलती आ रही है। स्थानीय साधु-संतों और नागरिकों में इस कार्य को लेकर

कामदगिरि की पवित्र शिलाओं को जेसीबी से तोडते हुए

भारी आक्रोश है। वे मौके पर पहुंचकर कार्य को रुकवाने में सफल रहे, पर प्रश्न अब भी वही है- क्या आस्था को रौंदकर ही होगा विकास? स्थानीय लोगों का आरोप है कि एमपीटी मनमर्जी से खुदाई कर रहा है, पर्वत और प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहा है। यह परिक्रमा मार्ग केवल एक रास्ता नहीं, यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर है, साधना की भूमि है। संत समाज व श्रद्धालुओं ने मांग की है कि डीएम चित्रकूट इस गंभीर मामले का संज्ञान लें और पर्वत के साथ की जा रही इस विकासजन्य हिंसा को तत्काल प्रभाव से रोका जाए। जब विकास की दिशा आस्था को रौंदती हो, तो वह विनाश का ही पर्याय है।


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