देवेश प्रताप सिंह राठौर,
वरिष्ठ पत्रकार
गीता के अनुसार जो कर्म निष्काम भाव से ईश्वर के लिए जाते हैं वे बंधन नहीं उत्पन्न करते। वे मोक्षरूप परमपद की प्राप्ति में सहायक होते हैं। इस प्रकार कर्मफल तथा आसक्ति से रहित होकर ईश्वर के लिए कर्म करना वास्तविक रूप से कर्मयोग है और इसका अनुसरण करने से मनुष्य को अभ्युदय तथा नि:श्रेयस की प्राप्ति होती हैगीता के अनुसार जो कर्म निष्काम भाव से ईश्वर के लिए जाते हैं वे बंधन नहीं उत्पन्न करते। वे मोक्षरूप परमपद की प्राप्ति में सहायक होते हैं। इस प्रकार कर्मफल तथा आसक्ति से रहित होकर ईश्वर के लिए कर्म करना वास्तविक रूप से कर्मयोग है और इसका अनुसरण करने से मनुष्य को अभ्युदय तथा नि:श्रेयस की प्राप्ति होती हैकुछ कर्मों, जैसे दैनिक दिन-चर्या के कर्मों के फल तो साथ के साथ ही मिल जाते हैं। परंतु कुछ कर्मों के फल संचित हो जाते हैं और कुछ समय पश्चात इसी जन्म में या आने वाले जन्मों में प्रारब्ध के रूप में मिलते हैं। कुछ का तत्काल, कुछ का कुछ
समय बाद और कुछ का अज्ञात की कब मिलना शुरू हो जाय. आपके कर्म ही आपका जीवन है।कर्म उन कार्यो को कहा गया है जो हमारे द्वारा किये जाते हैं, यह दो तरह के होते हैं एक अच्छे कर्म और एक बुरे कर्म। मनुष्य उसके जीवन में कई तरह के कार्य करता है जिसके आधार पर उसे फल मिलता है। बुरे कर्मो का बुरा फल मिलता है तथा अच्छे कर्मो का अच्छा फल मिलता है। हर धर्म में कर्म के बारे में बताया गया है और स्वर्ग-नर्क, जन्नत-जहन्नम आदि की बात कही गयी है। अगर आप जानना चाहिए है कि मनुष्य के अच्छे कर्म क्या है? इसके लिए हम को बहुत गहराइयों तक जाना पड़ेगा।


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