22 वर्ष की अवस्था में ही छोड़ दिया था अपना घर
बांदा, के एस दुबे । बाबा अवधूत की तपोस्थली सिमौनीधाम का देश में नाम है। बाबा अवधूत ने तपस्या करते हुए सिद्धि प्राप्त की। हठी स्वभाव के बाबा अवधूत ने सिमौनी को सिमौनीधाम बनाने में कठिन परिश्रम किया। सिमौनी गांव स्वामी अवधूत महाराज की जन्म स्थली है, अवधूत महाराज22 वर्ष की अवस्था से गृह त्याग दिया। उन्होंने गांव के बगल से बह रही गडरा नदी में खड़े होकर धूप व बारिश के बीच घोर तपस्या कर सिद्धि प्राप्त की थी। मालुम हो कि अवधूत स्वामी हठी स्वभाव के रहे, इसी हठ ने उन्हें उनकी घोर साधना के संकल्प को पूरा कराया और उनकी हठ साधना के कारण ही छोटा सा गांव सिमौनी, सिमौनी धाम के नाम से समूचे देश में विख्यात हो गया।बबेरू तहसील मुख्यालय से 13 किमी. दूर ग्राम सिमौनी जो आज आस्था का केंद्र बन चुका है। वर्ष 1923 में पं. रामनाथ के
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| भंडारे में भ्रमण करते बाबा अवधूत। फाइल फोटो |
घर एक बेटे का जन्म हुआ। जिसका नाम कृष्ण दत्त उर्फबलराम रखा है। वही बालक आगे चलकर स्वामी अवधूत महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। स्वामी जी ने प्रारंभिक स्तर की शिक्षा ग्रहण करने के बाद हठ साधना के पूर्व राजनीति के क्षेत्र में उतरकर वर्ष 1955 में ग्राम प्रधानी के चुनाव में भाग्य आजमाया। पराजय के बाद घर छोड़कर वैराग्य धारण कर रात्रि में चित्रकूट स्थित ब्रह्मलीन परशुराम स्वामी जी के आश्रम में जाकर वस्त्र त्याग कर संत बनने की दीक्षा ली। कुछ दिन रुकने के बाद गुरु आश्रम से खड़ाऊ व कमंडल लेकर चले गए। वृंदावन में भी कुछ दिनों तक साधना किया। वहां से पुनः आश्रम लौटे। अति प्राचीन साधना स्थली सिमौनी जोकि देव पुरुष श्याम मौनी के नाम से प्रख्यात हुआ। कुछ दूर से निकले गडरा नाला में भीषण ठंड में जल सूर्याेदय के पूर्व के समय तक गले तक घुस कर शरीर को तपाते व गर्मियों तपती धूप में बालू में पड़े रहकर शारीरिक वासनाओं को जला डाला। वर्ष 1967 में स्वामी जी को हनुमान जी ने स्वप्न में आदेश दिया कि भंडारा करो तभी से मौनी बाबा की समाधि स्थल पर प्रथम भंडारा छोटे रूप में शुरू किया गया। जिसमेइसके बाद स्वामी जी ने उज्जैन के क्षिप्रा नदी के किनारे आश्रम बनाकर तपस्या की। यहां पांच वर्ष गुजारे। दिल्ली के घड़ौली में अवधूत आश्रम बनाकर भक्तों सहित रहकर तप साधना में लीन हो गए। हर वर्ष बबेरू तहसील के सिमौनी आश्रम पर15 से 17 दिसंबर तक मेला व भंडारे का आयोजन होता है। जिसमें लाखें की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं और बाबा का आशीर्वाद प्राप्त कर भंडारे में प्रसाद ग्रहण करते हैं। इधर, हनुमान जी के परम उपासक बलराम अवधूत महाराज द्वारा जहां सिमौनी धाम में हर साल विशाल भंडारा कराया जाता है। वही वर्ष 1969 में अखंड राम नाम संकीर्तन की शुरुआत कराई जो लगातार आज भी जारी है। यहा उनके गुरु मौनी बाबा की समाधि आस्था का केन्द्र है यहा शंकर जी की85 फीट ऊची और हनुमान जी की110 फीट लेटी प्रतिमा के साथ गणेश व नंदी की मूति आस्था का केन्द्र है।


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