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Thursday, March 20, 2025

शीतला अष्टमी व्रत 22 मार्च को

चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है और बासी भोजन (जैसे मीठे चावल, हलवा, पूरी आदि) अर्पित करने की परंपरा है। शीतला अष्टमी का व्रत बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है।। सामान्यतः यह पर्व होली के आठ दिन पश्चात् आता है स्कंद पुराण के अनुसार, माता शीतला का वाहन गर्दभ है. वे अपने हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते धारण करती हैं, शीतला अष्टमी का व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी परेशानियां और कष्ट दूर हो जाते हैं।  माता शीतला को संक्रामक बीमारियों से रक्षा करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है यह व्रत स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं, संतान सुख, सुख-शांति ,धन,


वैभव की प्राप्ति के लिए भी अत्यधिक लाभकारी माना जाता है। देवी शीतला चेचक, खसरा आदि रोगों को नियन्त्रित करती हैं तथा लोग इन रोगों के प्रकोप से सुरक्षा हेतु उनकी पूजा-आराधना करते हैं। अष्टमी तिथि का  प्रारम्भ  22 मार्च  प्रात: 4:23 बजे से होगा और अष्टमी तिथि का समापन: 23 मार्च  प्रात: 5:23 बजे उदया तिथि अनुसार शीतला अष्टमी व्रत 22 मार्च को रखा जायेगा- माता को जल, अक्षत, रोली, हल्दी, चंदन और फूल अर्पित किए जाते हैं।  माता को ताजा भोजन का भोग नहीं लगाया जाता, बल्कि एक दिन पहले बना भोजन अर्पित किया जाता है  पूजा के दौरान शीतला माता की कथा का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

- ज्योतिषाचार्य एस.एस. नागपाल, स्वास्तिक ज्योतिष केन्द्र, अलीगंज

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