मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन 12 नवम्बर बुधवार को काल भैरव जयंती या कालभैरव अष्टमी मनाई जाएगी। इस दिन शिव के पांचवे रुद्र अवतार माने जाने वाले कालभैरव की पूजा-अर्चना साधक विधि-विधान से करते हैं। अष्टमी तिथि 11 नवम्बर को रात्रि 11:08 से प्रारम्भ होकर 12 नवम्बर को रात्रि 10 :58 तक रहेगी । काल भैरव भगवान शिव का रौद्र, विकराल एवं प्रचण्ड स्वरूप है। तंत्र साधना के देवता काल भैरव की पूजा प्रदोष काल और मध्य रात्रि में करना श्रेष्ठ है इसलिए अष्टमी में प्रदोष व्यापनी तिथि का विशेष महत्व होता है। यह दिन तंत्र साधना के लिए उपयुक्त माना गया है। काल भैरव को दंड देने वाला देवता भी कहा
जाता है इसलिए उनका हथियार दंड है। इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करने से भी उनकी विशेष कृषा प्राप्त होती है। उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति चौकी पर गंगाजल छिड़ककर स्थापित करे। इसके बाद काल भैरव को काले, तिल, उड़द, इमरती और सरसो का तेल अर्पित करे।काल भैरव भगवान के मंत्रों का जप करना चाहिए, भैरव जी का वाहन श्वान (कुत्ता ) है। भैरव के वाहन कुत्ते को पूएं खिलाना चाहिए। भैरव जी को काशी का कोतवाल माना जाता है। भैरव की पूजा से शनि राहु केतु ग्रह भी शान्त हो जाते है बुरे प्रभाव और शत्रुओं से छुटकारा मिल जाता है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं पूजन के लिए प्रदोष काल और रात 11.44 से 12.37 बजे तक का समय श्रेष्ठ है
- ज्योतिषाचार्य-एस.एस.नागपाल, स्वास्तिक ज्योतिष केन्द्र, अलीगंज, लखनऊ


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