हिलने लगे सियासत के सिंहासन
सन्नाटे में डूबे राजनीतिक चेहरों पर स्याही
जब सड़क पर आए जनता के सवाल
(सुखेन्द्र अग्रहरि)
चित्रकूट। जिले की सियासत में इस वक्त एक व्यापारी नेता का नाम उस चिंगारी की तरह गूंज रहा है, जिसने भाजपा की सत्ताई नींव को भीतर तक हिला दिया है। जब सत्ताधारी जनप्रतिनिधि अपनी तस्वीरों और झंडा-बैनर की राजनीति में उलझे हैं, तब यह व्यापारी नेता जनता के मुद्दों को लेकर सड़क पर उतर आया है। जिस तेवर और निडरता से इसने प्रशासन और सत्ता दोनों को आइना दिखाया है, उसने आम जनता के दिल में उम्मीद की लौ जलाई है। स्वास्थ्य व्यवस्था की दुर्दशा, डॉक्टरों की कमी, जिला अस्पताल का रेफर सेंटर बन जाना और वर्षों से लंबित ट्रॉमा सेंटर की मांग- ये सब ऐसे ज्वलंत प्रश्न हैं जो हर
घर की पीड़ा बन चुके हैं। पर अफसोस, जिनके कंधों पर जनता का बोझ था, वे सत्ताई चैन की नींद में सोए हैं। इस व्यापारी नेता ने इन्हीं जख्मों पर उंगली रख दी है और यही उसकी सबसे बड़ी ताकत बन गई है। मजे की बात है कि इस जनयुद्ध में कोई भी स्थानीय नेता, विधायक या सांसद उसके साथ खुलकर नहीं खड़ा दिख रहा। आखिर क्यों? क्या जनता के मुद्दे उठाना अब राजनीति के खिलाफ जुर्म हो गया है? या फिर इन समस्याओं के हल से कुछ लोगों की कमाई बंद हो जाएगी? चित्रकूट की राजनीति अब करवट ले रही है। जनता के गुस्से और व्यापारी नेता विनोद केशरवानी की हुंकार ने ऐसा माहौल बना दिया है कि लोग कहने लगे हैं कि अगर ये आवाज यूँ ही बढ़ती रही, तो भाजपा की जड़ें खुद जनता उखाड़ फेंकेगी। वहीं आज होने वाले आंदोलन में अगर जनता खुलकर सामने आई तो यह जिले के जनप्रतिनिधियों की चूलें हिलने से कम नही होगा। यह आंदोलन नहीं, चेतावनी है- उस सत्ता के लिए जो जनता की कराह को अब तक सुनने से इनकार करती रही।

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