( देवेश प्रताप सिंह राठौर)
......... वरिष्ट पत्रकार..........
जनसंख्या नियंत्रण कानून की देश में कितनी आवश्यकता है इसका आंकलन किया जा सकता है,संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की बुधवार को जारी 'स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉप्युलेशन रिपोर्ट 2023' में बताया गया है कि इस साल जून के आखिर तक भारत की आबादी चीन से करीब 29 लाख ज्यादा हो जाएगी। जानकारों के मुताबिक, इसका मतलब यह है कि भारत की आबादी अभी ही चीन से ज्यादा हो चुकी है। हालांकि दोनों देशों की आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही थी, उसके मद्देनजर यह कोई चौंकाने वाली सूचना नहीं है। पहले से यह ट्रेंड दिख रहा था और यह होना तय माना जा रहा था। फिर भी, अगर भारत अब आबादी के लिहाज से दुनिया में पहले नंबर पर और चीन दूसरे नंबर पर आ गया है तो इसके कुछ निश्चित मायने हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता।अव्वल तो यह कि चीन में कामकाजी आबादी का अनुपात अब कम होता जाएगा जबकि भारत में यह अनुपात कम से कम 2055 तक
एक पॉजिटिव फैक्टर के रूप में मौजूद रहने वाला है। संभवत: यह भी एक वजह है कि खबर आने के बाद चीन ने इसे नजरअंदाज करने की कोशिश की। उसने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता और यह कि उसके पास अब भी करीब 90 करोड़ लोगों की वर्कफोर्स मौजूद है। लेकिन फिर उसने यह भी कहा कि वर्कफोर्स में संख्या से ज्यादा अहमियत उसकी गुणवत्ता की होती है और उसके पास एजुकेटेड वर्कफोर्स है। चीन की ऐसी प्रतिक्रिया अकारण नहीं है।माओ काल में और उसके बाद भी सिंगल चाइल्ड की सख्त पॉलिसी ने समाज में ऐसे ट्रेंड विकसित कर दिए, जिनसे चीनी नेतृत्व चाहकर भी पीछा नहीं छुड़ा पा रहा। हाल के वर्षों में जब सिकुड़ती आबादी के खतरे नजर आने लगे, तब चीन सरकार ने नई पीढ़ी के लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने की कम कोशिशें नहीं कीं, लेकिन इन सबका कोई फल निकलता नहीं दिख रहा। इसके दुष्प्रभाव केवल चीनी अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं रहने वाले। विशालकाय कामकाजी आबादी की बदौलत पिछले दशकों में चीन सस्ते श्रम के जरिए पूरी दुनिया में सस्ते प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट करता रहा, लेकिन अब वहां मजदूरी बढ़ रही है। इसलिए चीन के कई बिजनेस वियतनाम जैसे देशों में शिफ्ट हो रहे हैं, जहां लागत कम है।बहरहाल, ये चुनौतियां भारत के लिए नए अवसर साबित हो सकती हैं। दुनिया के बड़े देशों में आने वाले वक्त में भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार सबसे तेज रह सकती है। इस दशक के खत्म होने से पहले ही वह तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका होगा। लेकिन तेज आर्थिक तरक्की के लिए जहां सरकार को सही नीतियां बनानी होंगी, वहीं उसे आर्थिक सुधार भी जारी रखने होंगे। इसके साथ वर्कर्स की स्किल में बेहतरी भी जरूरी है, जो कमजोर पहलू रहा है।
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