मेरे पुरखे वतन पर मिट चुके हैं, मुझे गद्दार समझा जा रहा है...
खागा, फतेहपुर, मो. शमशाद । विकास खंड हथगाम के मंगरेमऊ उर्फ मंगरी में हजरत सैयद शाह मंगरे बाबा के 38 वें सालाना उर्स मुकद्दस में बदायूं से आए जाने-माने कव्वाल नईम साबरी और जौनपुर की मशहूर कव्वाला गुड़िया परवीन के बीच शानदार मुकाबला हुआ। मुकाबला के दौरान दोनों फनकारों ने फूहड़ता से अपने को दूर रखा और बड़े ही अदब से दोनों फनकारों ने नात, मनकबत और बाद में गीत ग़ज़लों से सामईन को मुतासिर किया। भीड़ को देखते हुए थानाध्यक्ष अनिरुद्ध कुमार द्विवेदी ने सब इंस्पेक्टर राजन कनौजिया के नेतृत्व में पुलिस का खास इंतजाम किया था।
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| मंगरेमऊ उर्स में कव्वाली पेश करते नईम साबरी व गुड़िया परवीन। |
कव्वाली शुरू होने के पहले दोनों फनकारों का प्रधान मोहम्मद हसन, अध्यक्ष कमेटी महबूब आलम, आफान अहमद, अफजल भोपाली आदि के नेतृत्व में दोनों फनकारों का गुलपोशी के साथ इस्तकबाल किया गया। कव्वाली का आगाज मशहूर कव्वाल बदायूं के नईम साबरी ने नाते रसूल से की। जिंदगी का निशां नहीं मिलता, वो जहां है वहां नहीं मिलता, उसको ढूंढो मगर सलीके से, वो ख़ुदा है कहां नहीं मिलता। काबे में तेरा जलवा, काशी भी नजारा है, ये भी हमें प्यारा है, वो भी हमें प्यारा है। हिंदू को मिली गीता, इंजील ईसाई को, मुस्लिम के लिए तूने कुरआन उतारा है। मेरे पुरखे वतन पर मिट चुके हैं, मुझे गद्दार समझा जा रहा है। हम पे अल्लाह की जो रहमत है, मेरे सरकार की बदौलत है, बन के रहमत वो आए सबके लिए, सारे आलम पर उनकी रहमत है। फर्श से ले के अर्शे आजम तक, मेरे सरकार की हुकूमत है। तुमसे मिलने की आस रक्खी है, हमने आंखों में प्यास रक्खी है, ऐ सितम गर तेरी खुशी के लिए, दिल की दुनिया उदास रक्खी है। नईम साबरी ने मंगरे शाह बाबा की शान में शानदार कलाम पेश किया-किसी को जमाने की दौलत मिली है, किसी को जहां की हुकूमत मिली है, मैं अपने मुकद्दर पर कुर्बान जाऊं, मुझे मंगरे बाबा की निस्बत मिली है। गुड़िया परवीन ने शानदार कव्वाली पेश करते हुए उम्दा शायरी पेश की। उन्होंने भी कलाम की शुरुआत नाते रसूल से की। मिट्टी के खिलौने तेरी औकात ही क्या है। कतरा बोले, दरिया बोले, साहिल बोले नबी-नबी, जब मैं चलूं तैबा की जानिब, मंजिल बोले नबी-नबी। या खुदा गर तेरी अता हो जाए, तो एक मोहताज का भला हो जाए। ये सोने की हवेली ये दौलत भूल जाओगे। मदीना देखने के बाद जन्नत भूल जाओगे। चर्चा ख्वाजा का घर-घर है गलियों में, ख्वाजा अफजल हैं वलियों के वलियों में। जुस्तजू-ए-रसूल क्यों न करें, गुफ्तगू-ए-रसूल क्यों न करें, हम हैं शैदा-ए-मुस्तफा वाहिद, आरजू-ए-रसूल क्यों न करें। परिंदों की उड़ानों को अभी कुछ आम होने दो, अभी सूरज नहीं डूबा अभी कुछ शाम होने दो, मुझे बदनाम करने का बहाना ढूंढते क्यों हो, मैं खुद हो जाऊंगी बदनाम, पहले नाम होने दो। उर्स में बड़ी संख्या में पुलिस बल मौजूद रहा। मंगरे शाह बाबा की मजार पर अकीदतमंदों की भीड़ रही। मजार को दुल्हन की तरह सजाया गया था। इस बार उर्स में खास रौनक दिखाई दी। बड़ी संख्या में लोग दुकानों के साथ आए थे जहां जमकर खरीदारी हुई। पुरुषों की बजाय महिलाओं की भीड़ अधिक रही। पूर्व अनीस अहमद की सरपरस्ती में कयामुद्दीन, नूर हसन, गुलशेर, मोहम्मद फिरदौस, बबलू खान, मोहम्मद इसराफील भोपाली, मोहम्मद अय्यूब, दोस्त मोहम्मद, अरशद हबीबी, ताज मोहम्मद इंतजामकार पूरे समय इंतजाम में लगे रहे। दिन में कुरआन ख्वानी और शाम चार बजे गागर शरीफ में बड़ी संख्या में अकीदतमंद शामिल हुए।


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