पिपहरी राजकीय महाविद्यालय में आयोजित हुआ विधिक जागरूकता शिविर
बाँदा, के एस दुबे - राजकीय महाविद्यालय ग्राम पिपरहरी में शनिवार को विधिक जागयकता शिविर का आयोजन किया गया। इसमें तमाम जानकारियों से छात्र-छात्राओं को अवगत कराया गया। श्रीपाल सिंह, अपर जिला जज/सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ने शिविर में उपस्थित लोगों को बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के सम्बंध में जानकारी प्रदान की। सचिव द्वारा बाल विवाह पर जोर देते हुए कहा कि उक्त अधिनियम के अनुसार, लडकी की विवाह योग्य न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लडके की 21 वर्ष है। जो कोई भी बाल विवाह करेगा या उसमें सहायता करेगा, उसे दो साल तक के कठोर काराबास और एक लाख रूपये तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। 18 वर्ष से अधिक आयु के पुरूष द्वारा किसी नाबालिग लडकी से विवाह करने पर भी दंड का प्रावधान
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| शिविर में मौजूद छात्र-छात्राएं। |
है। अधिनियम के तहत यदि कोई बच्चा नाबालिग है तो उसका विवाह निरस्तीकरण योग्य होगा। इस अधिनियम में बाल विवाह से प्रभावित महिला और बच्चों के भरण-पोषण और निवास के प्रावधान भी शामिल है। यह अधिनियम बाल विवाह से संबधित अपराधों का संज्ञेय और गैर-जमानती होना सुनिश्चित करता है. जिससे पीडितों को त्वरित न्याय मिल सके। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य देश में बाल विवाह की समस्या से प्रभावी ढंग से निपटना और इसे पूरी तरह से समाप्त करना हैं। इसके साथ ही सचिव द्वारा किशोर न्याय बोर्ड अधिनियम-2015 के सम्बंध में विस्तार से जानकारी प्रदान की गई। नाबालिग बच्चों से होने वाले अपराधों में निशुल्क अधिवक्ता प्रदान किये जाने व अपराध के सापेक्ष निर्धारित सजाओं के सम्बंध में व्याख्यान किया गया।
राजवीर सिंह गौर क्षेत्राधिकारी सदर द्वारा अपने सम्बोधन में वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों के सम्बंध में बताया कि यदि किसी वृद्ध व्यक्त्ति द्वारा अपनी सम्पत्ति इस शर्त पर दान करता है कि दान प्राप्त करने वाला व्यक्ति उनकी देखभाल व भरण-पोषण करेगा और यदि ऐसा नही किया जाता है तो दान रदद किया जा सकता हैं एवं सम्पत्ति वापस ला जा सकती है। माता पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण तथा कल्याण अधि०-2007 द्वारा व्यस्क बच्चों को अपने माता पिता के लिए मासिक भरण पोषण देना काननी रुप से अनिवार्य करता हैं। वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा व परित्याग एक आपराधिक अपराध हैं जिसके लिए जुर्माना या जेल हो सकती है। इस अधिनियम के अन्तर्गत माता-पिता/वरिष्ठ नागरिक अपनी सम्पत्ति से बच्चों को बेदखल भी कर सकते हैं। क्षेत्राधिकारी महोदय द्वारा छात्र-छात्राओं को अन्य कानूनी अधिकारों व सड़क परिवहन के नियमों से अवगत कराया गया। तरुण खरे-पराविधिक स्वयं सेवक द्वारा बताया गया कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 01 अप्रैल 2010 से लागू हुआ था और यह अधिनियम शिक्षा को एक मौलिक अधिकार बनाता है। इस अधिनियम के तहत प्रत्येक बच्चे को उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति की परवाह किये बिना समान गुणवत्ता वाली शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता हैं। 06 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार हैं। शिविर के अंत में डाॅ. विनोद कुमार प्रधानाचार्य, राजकीय महाविद्यालय, ग्राम पिपरहरी द्वारा विधिक जागरुकता शिविर में उपस्थित सभी अतिथियों व छात्र छात्राओं का आभार व्यक्त किया गया। शिविर का संचालन अनिरुद्ध सिंह-अध्यापक द्वारा किया गया। इस अवसर पर डाॅ. अंजली पटेल, मिथलेश, सत्यप्रकाश यादव तथा राशिद अहमद डीईओ जिला विधिक सेवा प्राधिकरण मौजूद रहे।


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