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Sunday, December 15, 2024

यही प्रार्थना है प्रभु तुमसे, सदा दिखाओ सच की राह

शैलेन्द्र साहित्य सरोवर की 363 वीं साप्ताहिक रविवासरीय काव्य गोष्ठी आयोजित

फतेहपुर, मो. शमशाद । शहर के मुराइन टोला स्थित हनुमान मंदिर में शैलेन्द्र साहित्य सरोवर के बैनर तले 363 वीं साप्ताहिक रविवासरीय सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन केपी सिंह कछवाह की अध्यक्षता एवं शैलेन्द्र कुमार द्विवेदी के संचालन में हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में मंदिर के महंत स्वामी रामदास उपस्थित रहे। काव्य गोष्ठी का शुभारंभ करते हुए केपी सिंह कछवाह ने वाणी वंदना में अपने भाव प्रसून प्रस्तुत करते हुए कहा कि सरस्वती मां आइए, होकर हंस सवार। विमल करो मन, बुद्धि, चित, मेटो जग अंधियार।। कार्यक्रम को गति देते हुए कविता पढ़ी- पद की चाह नहीं है मुझको, नहीं प्रतिष्ठा की परवाह। यही प्रार्थना है प्रभु तुमसे, सदा दिखाओ सच की राह।। डा. सत्य नारायण मिश्र ने अपने भावों को एक छंद के माध्यम से कुछ इस प्रकार व्यक्त किया- साधू त्यागी चाहिए, मन में इच्छा नाहि। जो पावै भिक्षा करै और नहीं कछु चाहि।। दिनेश कुमार श्रीवास्तव ने अपने भावों को मुक्तक में कुछ इस प्रकार पिरोया- हो अहंकार के वशीभूत, मानव भूला प्रभु की सत्ता। ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध, हिल सकता

काव्य गोष्ठी में भाग लेते कवि एवं साहित्यकार।

नहीं एक पत्ता।। शिव सागर साहू  ने काव्य पाठ किया- अक्षय वट दर्शन करें, धन्य-धन्य सब लोग। संगम में मज्जन करें, महाकुंभ संयोग। प्रदीप कुमार गौड़ ने अपने क्रम में काव्य पाठ में कुछ इस प्रकार भाव प्रस्तुत किये- जीवन के पल-पल का साथी, जैसे बाती संग दिया। पकड़े रहूं हाथ मोबाइल, देख जले चाहे मेरा पिया।। नरेन्द्र कुमार ने अपनी रचना में कहा- कुंतीनंदन कर्ण थे, दानवीर विख्यात। दिया कवच-कुंडल विमल, रख सुरपति की बात।। हिमांशु कुमार जैसल ने  काव्यपाठ में अपने भावों को कुछ इस प्रकार से शब्द दिए- हो सर्दी की धुंधली ऊषा, या गर्मी की शीतल भोर। जीवनयापन की मनषा से, हाकर उठता जल्दी भोर।। कठिन परिश्रम कर दुनिया को श्रम का पाठ पढ़ाता है। पेपर वाला द्वार-द्वार जाकर पेपर पहुंचाता है।। काव्य गोष्ठी के आयोजक एवं संचालक शैलेन्द्र कुमार द्विवेदी ने अपने रूमानी जज्बात शायरी के माध्यम से कुछ यों व्यक्त किये- होंठों को तेरे छूके संवर जाए तो अच्छा। मेरी ये ग़ज़ल दिल में उतर जाय तो अच्छा।। तेरे प्यार में जियूं, मैं तेरे प्यार में मरूं, रब मुझपे ये रहम-ओ-करम करम जाय तो अच्छा। कार्यक्रम के अंत में स्वामी जी ने सभी को आशीर्वाद प्रदान किया। आयोजक ने आभार व्यक्त किया।


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