तिन्दवारी, के एस दुबे । ग्राम मूंगुस स्थित शीतलाधाम के सप्तम वार्षिकोत्सव पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस पर आचार्य अभिषेक शुक्ल ने कहा कि अर्थ अमृत है लेकिन कभी-कभी वह विष भी बन जाता है। नीति से आए और रीति से जिसका उपयोग हो वह अर्थ अमृत है,अनीति से आए तो वही विषवत होता है, इसलिए अर्थोपार्जन के व्यक्ति को प्रयत्न अवश्य करें लेकिन पापाचार नहीं करना चाहिए। अनादिकाल से धर्मशास्त्र ही मानव का सन्मार्ग प्रशस्त कर उसके लौकिक-पारलौकिक कल्याण का मार्ग आलोकित करते रहे हैं। धर्मशास्त्रों में ही प्रत्येक वर्ण के,
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कथा बखान करते आचार्य अभिषेक |
प्रत्येक आश्रम के कर्तव्य-पालन की प्रेरणा निहित है। ब्रह्मचर्याश्रम,गृहस्थाश्रम वानप्रस्थाश्रम तथा संन्यासाश्रम में क्या कर्तव्य पालन करने चाहिए,धर्म और अधर्म क्या है,यह सब जानने के मुख्य आधार शास्त्र ही हैं। भगवान् श्रीकृष्ण की बाललीला, मृदा भक्षण, गोवर्धन धारण आदि कथाओं का वर्णन किया। इस अवसर पर आयोजक प्रकाशचंद्र अवस्थी, कमलस्वरूप अवस्थी, पीयूष,वागीश, अवनीश, जगराम सिंह चौहान, प्रभास्कर त्रिपाठी, स्वर्ण सिंह, चंद्रशेखर तिवारी आदि उपस्थित रहे।
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