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Tuesday, April 15, 2025

बैंक मैनेजर जाएगा जेल- कुर्सी नहीं, कानून के कटघरे में बैठेगा दबंग

मैनेजर का बच पाना मुश्किल

एक्सपर्ट राय एडवोकेट क्रांति से

चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि । बैंक मैनेजर ने ग्राहक से की गई बदसलूकी व मारपीट का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में साफ दिख रहा है कि कैसे एक बैंक मैनेजर अपनी मर्यादा को ताक पर रखकर गाली-गलौज व मारपीट पर उतर आया। इस संबंध में अखण्ड भारत संदेश ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता क्रांति किरण पांडेय से ख्ुाल कर बात किया जिसमें उन्होने साफ-साफ और दमदार तरीके से जवाब दिया। प्रस्तुत है इस कानूनी संवाद की झलकः


फाइल फोटो अधिवक्ता क्रांति किरण पांडेय

1. क्या इस वीडियो के आधार पर बैंक मैनेजर जेल जा सकता है?

जवाबः

बिलकुल। वायरल वीडियो में बैंक मैनेजर की हिंसात्मक गतिविधि साफ दर्ज है। ये भारतीय न्याय संहिता की धारा 115/2 (चोट पहुंचाना), 352 (शांति भंग करने हेतु अपमान), 351 (धमकी देना) और 126 (गलत तरीके से रोकना) जैसी गंभीर धाराओं के अंतर्गत अपराध है। यदि पीड़ित ग्राहक ने विधिवत प्राथमिकी दर्ज कराई है, तो मैनेजर के खिलाफ गिरफ्तारी व न्यायिक प्रक्रिया का पूरा आधार मौजूद है।


2. क्या मैनेजर क्रॉस एफआईआर दर्ज करवा सकता है?

जवाबः

न्यायिक प्रक्रिया में कोई भी पक्ष एफआईआर दर्ज करवा सकता है, लेकिन क्रॉस एफआईआर केवल तभी प्रभावी होगी जब उसमें तथ्य हों। इस मामले में यदि ग्राहक ने केवल मोबाइल से वीडियो रिकॉर्डिंग की है, तो वह अवैध नहीं है। अनुच्छेद 19(1) हर नागरिक को स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार देता है, जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर सार्वजनिक कार्यों की रिकॉर्डिंग भी शामिल है- विशेषकर आत्मरक्षा या साक्ष्य के लिए।


3. यदि जांच अधिकारी मैनेजर को क्लीन चिट दे देता है तो क्या होगा?

जवाबः

यदि वीडियो साक्ष्य होने के बावजूद मैनेजर को क्लीन चिट दी जाती है, तो यह स्पष्ट रूप से मालिकाना रवैये व जांच प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल है। पीड़ित को इसके खिलाफ सेक्शन 175(3) बीएनएसएस के तहत न्यायालय में गुहार लगाने का अधिकार है। साथ ही, उच्चतर अधिकारियों से निष्पक्ष जांच की मांग की जा सकती है।



4. पीड़ित ग्राहक के पास क्या विकल्प हैं?

जवाबः

पीड़ित ग्राहक के पास कई वैधानिक विकल्प मौजूद हैं। प्राथमिकी दर्ज करवाना, वायरल वीडियो को सबूत के रूप में पेश करना, आलाधिकारियों से स्वतंत्र जांच की मांग, बैंक के लोकपाल में शिकायत, मानवाधिकार आयोग या उपभोक्ता फोरम में याचिका, जरूरत पड़ने पर हाईकोर्ट में रिट याचिका भी दाखिल की जा सकती है।


5. क्या जांच के नाम पर समझौता तो नहीं करवाया जा रहा?

जवाबः

यह सवाल अत्यंत गंभीर है। अक्सर देखा गया है कि दबाव में या प्रतिष्ठा बचाने के लिए सरकारी अफसर समझौते का दबाव बनाने लगते हैं। लेकिन कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं कि अपराधी को सिर्फ इसलिए माफ कर दिया जाए कि वह अफसर है। यदि पीड़ित पर दबाव बनाया जा रहा है, तो यह खुद एक अपराध है, और इसकी अलग से शिकायत की जा सकती है।




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