दिव्यांगों पर बरसीं लाठियां, चुप क्यों है सिस्टम?
लोकतंत्र नहीं, दमन तंत्र है यह?
चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि । जहां सहारा मिलना चाहिए, वहां लाठी चल रही है। यह कथन शुक्रवार सुबह जगदगुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय के छात्रों की लहूलुहान पीड़ा को बयां करता है। इस मंदिरनुमा शिक्षण संस्थान में उस वक्त अफरा-तफरी मच गई जब अपनी परीक्षा परिणाम व मूलभूत सुविधाओं को लेकर शांतिपूर्वक मिलने आए दृष्टिबाधित छात्रों पर विश्वविद्यालय प्रशासन और सुरक्षाकर्मियों ने लाठियों से हमला कर दिया। सुबह 10 बजे छात्रों ने कुलपति डॉ शिशिर पांडेय से मिलने का प्रयास किया। लेकिन संवाद के बजाय उन्हें जवाब मिला-दिव्यांगों की रोज नई कहानियां होती हैं। यह वाक्य जैसे चिंगारी बन गया। लगभग एक घंटे बाद छात्रों ने जब पुनः
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| विश्वविद्यालय प्रशासन के हमले से लहूलुहान दिव्यांग छात्र उमेश पटेल |
प्रशासनिक भवन के समक्ष अपनी बात रखने की कोशिश की, तो मानो विश्वविद्यालय प्रशासन ने संवेदनशीलता की चादर उतार कर दबंगई पहन ली। सुरक्षा प्रभारी मनोज पांडेय व अन्य कर्मचारियों ने आंखों से देख नहीं सकने वाले इन मासूम छात्रों पर लाठियां बरसाईं। चीखें गूंजती रहीं, छात्र गिरते रहे, कुछ बेहोश हो गए, लेकिन कोई सहायता नहीं आई। उमेश पॉल, पंचमलाल प्रजापति, दीक्षा कुमारी, सौरभ तिवारी समेत डेढ़ दर्जन से अधिक छात्र गंभीर रूप से घायल हो गए। जब मामला तूल पकड़ा, तब मौके पर पहुंचे कोतवाल कर्वी व एसडीएम कर्वी भी कोई स्पष्ट कार्रवाई न कर पाए। सवाल यह है कि क्या यह वही दिव्यांग विश्वविद्यालय है जो न्याय और समानता की पाठशाला कहलाता है? क्या यह तंत्र अब कमजोरों की आवाज को कुचलने का नया प्रयोगशाला बन चुका है?

विश्वविद्यालय प्रशासन के हमले से घायल बेहोश दिव्यांग छात्र
विश्वविद्यालय का स्पष्टीकरण
इस संबंध में यूनिवर्सिटी के मनोज पांडेय से बात हुई तो उन्होंने बताया कि छात्रों की परीक्षा के मूल्यांकन संबंधी मामला है और टीम पांच सदस्यीय गठित की गई है उसमें छात्र भी शामिल है, जांच की जाएगी जो दोषी होगा उसके खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी


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