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Thursday, May 22, 2025

वट सावित्री व्रत 26 मई

ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है इसमें वट वृक्ष की पूजा की जाती है। इस वर्ष वट सावित्री व्रत 26  मई को है। इसी दिन सोमवती अमावस्या मनाई जाएगी, इस व्रत को बरगदाही व्रत भी कहते हैं महिलायें ये व्रत अखण्ड सौभाग्य के लिये करती है। इस व्रत में उपवास रखते है। वट सावित्री व्रत पतिव्रता धर्म का प्रतीक माना जाता है। सत्यवान सावित्री की कथा में यह वर्णन है सावित्री ने कठोर व्रत, तप और साहस के बल पर अपने मृत पति सत्यवान को पुनर्जीवन दिलवाया था। यह व्रत  नारी शक्ति, प्रेम, धैर्य और समर्पण का प्रतीक बन गया है। तभी से सभी सुहागन महिलाएं पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन में सुख समृद्धि के लिए इस व्रत को करती हैं

 

वट वृक्ष को देव वृक्ष माना जाता है। इसकी जड़ों में ब्रह्नााजी, तने में विष्णु जी का और डालियों और पत्तियों मेें भगवान शिव का वास माना जाता है। वट वृक्ष की पूजा से दीर्घायु , अखण्ड सौभाग्य और उन्नति की प्राप्ति होती है। अमावस्या तिथि का प्रारम्भ 26 मई को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर होगी और तिथि का समापन 27 मई को सुबह 8 बजकर 31 मिनट पर होगा ज्येष्ठ अमावस्या तिथि दोपहर के समय में  वट वृक्ष पूजन करना श्रेष्ठ है  वट सावित्री व्रत के दिन चन्द्रमा कृतिका  नक्षत्र और मेष राशि में दिन में 1:40 तक उपरान्त वृषभ राशि का संयोग बना रहे है बुध आदित्य योग  और मालव्य योग भी बनेगा  

व्रत विधानः- प्रातःकाल स्नान आदि के बाद बांस की टोकरी में सप्त धान्य रख कर ब्रह्ना जी की मूर्ति की स्थापना कर फिर सावित्री की मूर्ति की स्थापना करते है और दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करके टोकरी को वट वृक्ष के नीचे जाकर ब्रह्ना तथा सावित्री के पूजन के बाद सत्यवान और सावित्री की पूजा करके बड़ (बरगद) की जड़ में जल देते है।वट वृक्ष (बरगद) के नीचे बैठ कर सावित्री और सत्यवान की कथा भी सुननी चाहिए पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भीगा चना, फूल तथा धूप से पूजन करते है। वट वृक्ष पूजन में तने पर कच्चा सूत लपेट कर 7, 21 अथवा 108 परिक्रमा का विधान है किन्तु न्यूनतम सात बार परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए

-  ज्योतिषाचार्य एस. एस. नागपाल, स्वास्तिक ज्योतिष केन्द्र , अलीगंज , लखनऊ

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