करोड़ों की चपत पर फूटा जनता का गुस्सा
ठेकेदार मालामाल, विभाग बेहाल
चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि । पर्यटन विकास की योजनाएं जब बिना जमीनी समझ और स्थानीय अनुभव के बनाई जाती हैं, तो परिणाम केवल खोखली चमक और करोड़ों की बर्बादी के रूप में सामने आते हैं। रामघाट की सजावट में करोड़ों खर्च कर लाइटों के पोल लगाए गए, लेकिन पहली ही बाढ़ में विभागीय लापरवाही की पोल खुल गई। बहाव के साथ बह गए विकास के दावे और उजड़ गई करोड़ों की चमक। बुंदेली सेना के जिलाध्यक्ष अजीत सिंह ने तीखा हमला करते हुए कहा कि जब प्रशासन और विभाग को यह पहले से पता था कि रामघाट हर साल बाढ़ की चपेट में आता है, तो फिर ऐसी कमजोर और सजावटी लाइटों को घाट किनारे लगाने का क्या औचित्य था? कहा कि यह सामान्य जानकारी भी यदि विभागीय अधिकारियों के पास नहीं थी तो यह उनकी घोर अदूरदर्शिता और
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| पर्यटन विभाग की लापरवाही से चौपट रामघाट के लाइट पोल |
लापरवाही को दर्शाता है। बाढ़ ने घाट किनारे लगाए गए ज्यादातर लाइट पोलों को तहस-नहस कर दिया है। करोड़ों की लागत से लगा पर्यटन सौंदर्यीकरण अब स्क्रैप में तब्दील हो गया है। अजीत सिंह ने आरोप लगाया कि विभाग ने तो ठेकेदार को भुगतान कर अपनी जिम्मेदारी निभा दी, लेकिन जो अफसर गलत जगह और गलत सामग्री के प्रयोग की अनुमति देकर सरकारी धन का दुरुपयोग करवा रहे हैं, उन पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। स्थानीय जनता भी इस बर्बादी पर आक्रोशित है। उनका कहना है कि यह बाढ़ नहीं, भ्रष्टाचार और बदइंतजामी का परिणाम है, जिसकी कीमत अब जनता के कर के पैसे से चुकाई जा रही है। बुंदेली सेना ने इस मामले में जिलाधिकारी से उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। चेतावनी दी कि यदि इस प्रकरण में दोषियों को चिन्हित कर सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो संगठन जनआंदोलन की राह पर उतरेगा। अब सवाल है कि क्या लाइटों के बहने के बाद भी अफसरों की आंखें खुलेंगी? या फिर हर साल करोड़ों यूं ही बहते रहेंगे?
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