आह शहीदों ! (To learn how to die)
मन कहता हैं इस धरती पर हो मेरा शत बार जन्म,
पहनु फांसी का मै फंदा कहके वंदे मातरम।।
प्रसिद्ध नरेश
हर घर तिरंगा इस कार्यक्रम की शुरुआत कुछ ही वर्ष पूर्व हुई । हमारे स्वतंत्रता दिवस पर अपने घर में राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगा को लहराते देखने का आनंद ही कुछ और है, जिसके कारण मुझे यह कार्यक्रम अति प्रिय है। तिरंगा अदभुत है और उसके रंगों का क्रम अत्यधिक विशेष - किसी भी राष्ट्र का निर्माण शौर्य व बलिदान से ही होता है जिसका प्रतीक केसरिया रंग , जब देश में शौर्य व बलिदान का स्वर गूंजता है तभी राष्ट्र में शांति की स्थापना होती है जिसका प्रतीक है श्वेत रंग एवं जब देश में शांति होती है तभी राष्ट्र में सम्पन्नता व समृद्धि की स्थापना होती है जिसका प्रतीक है हरा रंग । आपको स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम बधाई।
अभी बात करते है शौर्य व बलिदान की। दो भारत मां के लाल जिनके नाम है - श्री मदनलाल ढींगरा और श्री हरिकिशन । मुझे मुश्किल हो रही है किसे अधिक भाग्यशाली कहूं ? क्या आप मेरी सहायता करेंगे ???
श्री मदनलाल ढींगरा को 17 अगस्त , 1909 ई. को फांसी की सज़ा हुई । क्यों ? अमर शहीद भगत सिंह के अगस्त , 1928 के "किरती" में प्रकाशित लेख जो "आज़ादी की भेंट शहादते" लेखमाला का अंग है के अनुसार , " 1 जुलाई ,1909 को इंपीरियल इंस्टीट्यूट के जहांगीर हॉल में एक बैठक थी । सर कर्जन वायली भी वहां गये हुए थे। वे दो और लोगों से बाते कर रहे थे कि अचानक ढींगरा ने पिस्तौल निकालकर उनके मुंह की ओर तान दी । कर्जन साहिब की डर के मारे चीख निकल गई , लेकिन कोई इंतजाम होने से पहले ही मदनलाल ने दो गोलियां उनके सीने में मारकर उन्हें सदा की नींद सुला दिया।
फिर कुछ संघर्ष के बाद वे पकड़े गये। बस फिर क्या था , दुनिया भर में सनसनी मच गई ।सब लोग उन्हें जी-भरकर गालियां देने लगे।उनके पिता ने पंजाब से तार भेजकर कहा कि ऐसे बागी , विद्रोही और हत्यारे आदमी को मै अपना पुत्र मानने से इनकार करता हूं। भारत वासियों ने बड़ी बैठके की। बड़े-बड़े भाषण हुए । बड़े-बड़े प्रस्ताव पास हुए । सब उनकी निंदा में । पर उस समय भी एक सावरकर वीर ही थे, जिन्होंने खुल्लमखुल्ला उनका पक्ष लिया। "
( भगत सिंह और उनके साथियों के संपूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़, पृष्ठ संख्या 167)
श्री मदनलाल ढींगरा ने कहा था कि -' इस समय यदि हिन्दुस्तान को किसी सबक की जरूरत है तो यह कि मरना कैसे चाहिए। और इसे सिखाने का तरीका है कि हम खुद मरकर दिखाए। इसीलिए मैं मर रहा हूं।'
फांसी के तख्ते पर खड़े हुए श्री ढींगरा से पूछा जाता है - कुछ कहना चाहते हो ? उत्तर मिलता है , " वंदे मातरम !"
श्री हरिकिशन को 9 जून, 1931 को लाहौर की मियावली जेल में सुबह 6 बजे फांसी हुई। ये वीर भगतसिंह को अपना आदर्श मानते थे। जेल में भगत सिंह से न मिलने देने पर इन्होंने अनशन शुरू किया। नौवें दिन भगत सिंह को उनकी कोठरी में भेजा गया। ये पंजाब के गवर्नर ज्योफ्रे डी मोरमोरेंसी को मारने में असफल हुए और जेल में गए। कैसे ??
पंजाब विश्व विद्यालय का दीक्षांत समारोह 23 दिसंबर,1930 को सम्पन्न होना था जिसकी अध्यक्षता पंजाब के गवर्नर ज्योफ्रे डी मोरमोरेंसी ने की ।सर्व पल्ली राधा कृष्णन दीक्षांत समारोह में भाषण देने वाले थे। हरि किशन सूट-बूट पहने पहले ही दीक्षांत भवन पहुंच गए। हाथ में एक डिक्शनरी थी, जिसके बीच के हिस्से को काट कर रिवॉल्वर रखा हुआ था।
दीक्षांत समारोह के समाप्त होने पर हरिकिशन जी एक कुर्सी पर खड़े हो गए और एक गोली दागी जो गवर्नर की बांह छीलती हुई निकल गई, दूसरी गोली पीठ पर फिसलती हुई निकल गई। तीसरी गोली दागनी चाही कि श्री डॉ राधा कृष्णन ( स्वतंत्र भारत के प्रथम उप राष्ट्रपति व दूसरे राष्ट्रपति , जिनकी स्मृति में 5 सितंबर को स्वतंत्र भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है) गवर्नर को बचाने के लिए उसके सामने आ गए और श्री हरिकिशन ने गोली नहीं चलाई ।
श्री हरिकिशन के पिता श्री गुरदास मल को भी गिरफ्तार कर जेल की असहनीय यातनाएं दी गई, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। उनके पिता श्री भी उन्हीं की तरह देशभक्त थे। उनसे उन्होंने जेल में पूछा था , " मैने तो तुम्हे अच्छा निशानेबाज बनाया था, फिर निशाना कैसे चूक गया ?? "
श्री हरिकिशन ने अंतिम इच्छा बताई थी कि - " मै इस पवित्र धरती पर तब तक जन्म लेता रहूं, जब तक कि इसे स्वतंत्र न कर दूं । यदि मेरा मृत शरीर परिवार वालों को दिया जाए तो अंतिम संस्कार उसी स्थान पर किया जाए जहां शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का संस्कार हुआ था। मेरी अस्थियां सतलुज में उसी स्थान पर प्रवाहित की जाए, जहां उन लोगों की प्रवाहित की गई ।"
लेकिन उनके शरीर को जेल में ही.....
" मारे गए है सर्वश्रेष्ठ वीर । दफना दिए गए वे
चुप चाप , एक निर्जन भूमि में ,
कोई आंसु नहीं बहे उन पर
अजनबी हाथों ने उन्हें पहुंचा दिया कब्र में,
कोई सलीब नहीं, कोई घेरा नहीं, कोई सामाधि लेख नही ,
जो बता सके उनके गौरव शाली नाम ।
घास उग रही हैं उन पर, एक दुर्बल पत्ती
झुकी हुई, जानती है इस रहस्य को,
बस एक मात्र साक्षी थी उफनती लहरें ,
जो प्रचंड आघात करती है तट पर,
लेकिन वे प्रचंड लहरें भी नहीं ले जा सकती
अलविदा के संदेश
उनके सुदूर घर तक। "
( शहीद - ए - आज़म की जेल नोटबुक , वी.एल. फिंगर की पंक्तियां )
अब, आप वरिष्ठों से मेरा (प्रसिद्ध नरेश) प्रश्न है जिसका उत्तर मेरे पास नहीं है कि - शहीद मदनलाल ढींगरा और शहीद हरिकिशन दोनों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में अधिक भाग्यशाली कौन था ???
🙏 15 अगस्त , स्वतंत्रता दिवस की पुनः अग्रिम बधाई ।🙏🙏
वंदे मातरम !

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🙏
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteजानकारी युक्त लेख
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