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Wednesday, November 5, 2025

कतकी मेला में कालिंजर दुर्ग में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब

भगवान नीलकंठ का श्रद्धालुओं ने किया पूजन-अर्चन 

मेले में लगी दुकानों पर जमकर हुई खरीदारी 

नरैनी, के एस दुबे । कालिंजर दुर्ग के ऐतिहासिक कतकी मेले में लगभग दो लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने तालाबो में स्नान कर भगवान नीलकंठ के दर्शन किए। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से मेले में आए लोगो की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए स्थानीय और जिला प्रशासन ने व्यवस्थाएं संभाली। ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के कालिंजर दुर्ग में कार्तिक पूर्णिमा को लगने वाले मेले में मंगलवार से श्रद्धालुओं और दर्शनार्थियों का आना शुरू हो गया था। यहां स्थानीय सहित कर्वी, महोबा, फतेहपुर, हमीरपुर व सीमावर्ती सतना, पन्ना, रीवा, टीकमगढ़ आदि जिलों से बड़ी

कालिंजर दुर्ग में लगी श्रद्धालुओं की भीड़।

संख्या में भगवान नीलकंठ को जल चढ़ाने पुरुष और महिलाएं पहुंची। कोटि तीरथ, बुढ्ढा-बुढ्ढी, ताल कटोरा आदि तीर्थ तालाबो में स्नान कर भगवान नीलकंठ के दर्शन किए। प्रशासन ने छोटी बड़ी सभी गाड़ियों के किले में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी। मुख्य गेट से ही बेरिकेटिंग कर भीड़ को नियंत्रित करने की व्यवस्था की गई थी, जिससे लोगो ने कालिंजर के मुख्य मार्ग और खेतों में बड़ी संख्या में अपने वाहन खड़े कर दिए। किले के नीचे पारम्परिक मेला लगा, जिसमें हजारों लोगों ने खरीददारी की।

चंदेल शासकों ने शुरू की थी मेले की शुरूआत

नरैनी।कालिंजर दुर्ग में चंदेल शासकों ने एक हजार साल पहले मेला की शुरुआत की थी। नाटक, नृत्य व लोककलाओं का आयोजन होता था। चंदेल शासक परिमर्दि देव ने 1165 ईस्वी में कालिंजर में कतकी महोत्सव की शुरुआत की थी, तब यह मेला 5 दिनों तक लगता था। दूर-दूर से लोग बैलगाड़ी, घोड़ा गाड़ी और पैदल चलकर यहां आते थे। चंदेल राजा के मंत्री और प्रसिद्ध नाटककार वत्सराज ने अपने स्वरचित नाटक रूपम षटकम में मेला का उल्लेख किया है। राजा मदन वर्मन के शासन काल में लोक कलाओं को बहुत मान्यता दी जाती थी। यहां की

कालिंजर दुर्ग में विराजमान भगवान नीलकंठ।

सुप्रसिद्ध नर्तकी पद्मावती के नृत्य का आयोजन मेला के दौरान किया जाता था। मध्य भारत क्षेत्र में विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं में होने वाले इस आयोजन की दूर-दूर तक चर्चाएं होती थी। मेला में कपड़ो, खाने पीने की सामग्री सहित विभिन्न प्रकार की हस्तनिर्मित वस्तुओं का बड़ा बाजार लगता था। पुरातन काल में कालिंजर के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विभिन्न कालखण्डों में कवियों लेखकों ने कालिंजर के महात्म्य का उल्लेख किया है। विष्णु पुराण, गरुण पुराण, वायु पुराण, कूर्म पुराण, वामन पुराण, वाल्मीकि रामायण, महाभारत सहित मध्यकालीन, ब्रिटिश काल और लोक कथाओं में कालिंजर और भगवान नीलकंठ की वैभव गाथा मिलती है।

पत्थर खिसकने से आधा दर्जन लोग घायल

नरैनी। ऐतिहासिक कालिंजर दुर्ग के रास्ते में पत्थर खिसकने से कतकी मेला देखने जा रहे आधा दर्जन लोग घायल हो गए, जिनमें गम्भीर रूप से घायल एक व्यक्ति को मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया है। बुधवार की दोपहर बाद बाद लगभग दो बजे दुर्ग के रास्ते में बलखण्डेश्वर महादेव मंदिर के निकट अचानक एक बड़ा पत्थर खिसक कर रास्ते में आ गया। कतकी मेला की भीड़ होने के कारण इस रास्ते पर बड़ी संख्या में लोग दुर्ग के ऊपर जा रहे थे। घटना में भरतलाल पाल 23 वर्ष पुत्र उदयपाल, मनीष पाल 17 वर्ष पुत्र दादूराम निवासी गुठला थाना अजयगढ़ जिला पन्ना, कृष्णा अहिरवार 22 वर्ष पत्नी राजेन्द्र निवासी हनुमान पुरा थाना पहाड़ी खेड़ा जिला पन्ना सहित कुछ अन्य लोग पत्थर की चपेट में आकर घायल हो गए। घटना के बाद पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए सभी घायलों को एम्बुलेंस से कालिंजर पीएचसी भिजवाया। जहां कुछ लोगों को मामूली चोटें लगी थी उन्हें उपचार कर छुट्टी दे दी गई, लेकिन एक महिला सहित तीन घायलों को नरैनी सीएचसी भेजा गया था। चिकित्सक ने भरत लाल पाल की हालत गंभीर देखते हुए उसे मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया है।बताया गया है कि इसके कमर के नीचे चट्टान की जोरदार ठोकर लगी है, जिससे दोनो पैर काम नही कर रहे हैं। 


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