चित्रकूट ब्यूरो, सुखेन्द्र अग्रहरि : सूर्य नमस्कार अपने आप में एक संपूर्ण व्यायाम है, जो शरीर के बाह्य और आंतरिक संपूर्ण अंगों के साथ मन पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ता है। आवश्यकता है इसकी सभी स्थितियों को समझ कर करना क्योंकि इसमें अनेक आसन व प्राणायाम शामिल हैं साथ ही साथ सूर्य के ध्यान से सौर ऊर्जा का प्रवाह शरीर के रग रग में होकर उन्हें निरोग बनाता है। कुबेर गंज निवासी योगाचार्य रमेश सिंह राजपूत ने बताया कि यदि सूर्य नमस्कार सही तरीके से श्वास-प्रश्वास को लयबद्ध करते हुए किया जाए तो इसके चमत्कारी लाभ प्राप्त होते हैं। यह मेरुदंड को लचीला बनाता है। नियमित इस योगासन को करने से शारीरिक संतुलन बना रहता है, कमर पतली और फुर्तीली बनती है, वृद्धावस्था में कमर के झुकाने की समस्या दूर रहती है, अधिक देर तक बिना थके काम करने की क्षमता का विकास होता है। एकाग्रता बढ़ती है, महिलाओं के कमर, कूल्हे व छाती सुडौल रहती है, चेहरे पर चमक व निखार, वाणी में मधुरता प्रखरता रहती है। गर्भाशय, प्रजनन अंग सशक्त रहते हैं। संपूर्ण शरीर में रक्त शुद्ध होकर उसका संचार बेहतर रहता है। तनाव, अवसाद, इनसोम्निया, एंजायटी जैसे मानसिक रोग मिटते हैं। सर दर्द, गर्दन व हाथों में कंपन रोग नहीं होता। श्वास और हृदय गंडमाला, गुल्म रोग होने की संभावना
नहीं रहती। यह अत्यंत निर्दोष शारीरिक व्यायाम है इसे बालक, युवा, वृद्ध पुरुष, महिला, योगी, गृहस्थ सभी कर सकते हैं। तीन माह से अधिक की गर्भवती महिलाएं इसे न करें। योगाचार्य ने बताया कि इस बहु उपयोगी सूर्य नमस्कार में 12 स्थितियां हैं जो कई आसनों से मिलकर बनती हैं। जिसमें पहली स्थिति प्रणमासन में एडी पंजा मिलाकर सीधे ताड़ासन की स्थिति में खड़े होकर सीने पर प्रणाम की मुद्रा और स्वास्थ्य सामान्य रखते हुए ध्यान उगते हुए सूर्य के रंग पर रखते हैं। दूसरी स्थिति ऊर्ध्व नमस्कार आसन में श्वास भरते हुए दोनों हाथ और दृष्टि ऊपर की ओर रहती है। स्थित तीन हस्त पादहस्त आसन में श्वास छोड़ते हुए घुटने सीधे रखते हुए दोनों हाथ पैरों के बगल में ले जाते हैं। स्थित चार एक पादप्रसणासन/अश्व संचलन में सांस लेते हुए दायां पैर पीछे ले जाते हैं, बायां पैर दोनों हाथों के बीच में समकोण पर रखते हैं, दृष्टि ऊपर। स्थिति पांच दंडासन/दंड चतुरंगासन में श्वास छोड़ते हुए बायां पैर दाएं पैर के बगल में ले जाते हैं। स्थिति छह साष्टांग प्रणिपातासन में श्वास लेकर छोड़ते हुए शरीर के आठ जमीन पर रहते हैं। दो पैर के पंजे, दो घुटने, सीना, दो हाथ के पंजे और माथा। स्थिति सात भुजंगासन में श्वास भरते हुए कमर जमीन की ओर और धड़ व दृष्टि ऊपर की ओर रखते हैं। स्थिति आठ अधोमुखश्वानासन/पर्वतासन में श्वास छोड़ते हुए कमर उठाते हैं पैर घुटनों से सीधे रखते हुए एड़ियां जमीन पर, सर दोनों हाथों के मध्य से अंदर, दृष्टि नाभि पर रहती है। स्थित नौ में श्वास भरते हुए स्थित चार दोहराते हैं। स्थित 10 में श्वास छोड़ते हुए स्थित तीन को दोहराते हैं। स्थिति 11 में सांस लेते हुए स्थित दो दोहराते हैं। स्थिति 12 में श्वास छोड़ते हुए स्थित एक पर वापस आते हैं। इसी तरह दूसरे पैर से इन स्थितियों को बार-बार सामर्थ्य के अनुसार दोहराते हैं।
No comments:
Post a Comment