विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस
प्रसिद्ध नरेश
विदेशी लुटेरो की दृष्टि मे भारत सदा से अखरता रहा है। अंग्रेज ही नही बल्कि कईयों ने भारत भूमि की अस्मिता को ठेस पहुँचाने का कुत्सित प्रयास किया है। वर्तमान समय मे भी हम स्पष्ट देख ही सकते है कि कैसे 'अच्छे अच्छे' देशों का क्या दृष्टिकोण है भारत और भारतवासियों के प्रति..... उनके मन मे कैसी कैसी ' प्रेम ' तरंग उमंग ले रही है ये उनके स्वघोषित ' दुनिया के रखवाले ' व्यवहार व वक्तव्यों से स्पष्ट परिलक्षित हो रहा हैं।
दिल मे कुछ मुख में कुछ.... भारत कभी भी ना तो डरा है और ना ही भारतवासी कभी भी विदेशी सत्ता को भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप को स्वीकार किया.....
कुछ लोग है जो कहते दिखे कि विदेश नीति ठीक नही.... हमारे संबंध खराब हो रहे है । हम तो वसुधैवकुटुम्बकम् को मानने वाले हैं और.....
अमर शहीद भगत सिंह ( बलवंत सिंह के छद्म नाम से प्रकाशित हुआ) के "मतवाला " साप्ताहिक के लेख के अनुसार-
*" वसुधैव कुटुंबकम! " जिस कवि सम्राट की यह अमूल्य कल्पना है, जिस विश्व प्रेम के अनुभवी का हृदयोद्गार हैं, उसकी महत्ता का वर्णन करना मनुष्य- शक्ति से सर्वथा बाहर हैं ।
'विश्व बंधुता!' इसका अर्थ मै तो समस्त संसार मे समानता ( साम्यवाद, world wide equality in true sense) के अतिरिक्त कुछ नही समझता ।
कैसा उच्च हैं विचार! सभी अपने हो । कोई भी पराया न हो कैसा सुखमय होगा वह समय, जब संसार से परायापन सर्वथा नष्ट हो जायेगा; जिस दिन यह सिद्धांत समस्त संसार मे व्यवहारिक रूप में परिणत होगा, उस दिन संसार को उन्नति के शिखर पर कह सकेंगे। जिस दिन प्रत्येक मनुष्य इस भाव को हृदयंगम कर लेगा, उस दिन - उस दिन संसार कैसा होगा ? जरा कल्पना करो तो! .......
काले गोरे उस दिन भी होंगे परंतु अमेरिकावासी वहाँ के काले निवासियों (Red Indians) को जीते जी जला न सकेंगे। शांति होगी परंतु पीनलकोड न होगा।
अंग्रेज भी होगी भारतवासी भी , परंतु उस समय उनमे गुलाम और शासक का भाव न होगा।......
विश्व प्रेमी वह वीर है जिसे भीषण विप्लववादी, कट्टर अराजकतावादी कहने मे हम लोग तनिक भी लज्जा नही समझते - वही वीर सावरकर।
विश्व प्रेम की तरंग मे आकर घास पर चलते चलते रुक जाते है कि कोमल घास पैरों तले मसली जायेगी। *
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जरा देखिये तो सही कि भगत सिंह को युग दृष्टा क्यों कहा जाता हैं। यदि भारत वासियों ने शक्ति शाली की विश्व बंधुता और निर्बल की विश्व बंधुता का अंतर आत्मसात किया होता तो हमको हमारे तथाकथित 'बंधुओ' से देश विभाजन न करना पड़ता......
आज विभाजन विभीषिका दिवस है। आज हमको बड़ी लकीर खीचने की जरूरत है। देश के वासियों को संकल्प करना ही होगा की हम सबसे पहले भारतीय ही है। क्योंकि जब " एक कुटुंब " के दो या चार भाई प्रेम से साथ न रह सके तो विभाजन ही होता है यह ही आकाट्य सत्य है ।
अतः हमें भाई - भाई की बात को मूल से काटना होगा क्योंकि उसका ही परिणाम विभाजन है। आदर्श अवस्था या बड़ी लकीर है - हिंदुस्तानी या भारतीय।
कोई दुश्मन नहीं ?
तुम कहते हो, तुम्हारा कोई दुश्मन नहीं?
अफ़सोस! मेरे दोस्त, इस शेखी में दम नहीं,
जो शामिल होता है फ़र्ज़ की लडाई में,
जिसे बहादुर लड़ते ही है
उसके दुश्मन होते ही है। अगर नहीं हैं तुम्हारे
तो वह काम ही तुच्छ है जो तुमने किया हैं।
तुमने किसी ग़द्दार के कुल्हे पर वार नही किया है,
तुमने झूठी कसमे खाने वाले होंठ से प्याला नही छीना है,
तुमने कभी किसी गलती को ठीक नही किया है,
तुम कायर ही बने रहे लडाई में।
(चार्ल्स मैके, 747)
शहीदेआज़म की जेल नोट बुक पृष्ठ 33 (30)
स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम बधाई
प्रसिद्ध नरेश



बहुत सुंदर , युवा पत्रकार की कलम से निकले यह मोती अति सुंदर हुई।
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