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Friday, September 12, 2025

नेपाल असन्तोष, अराजकतावाद और भारत का वसुधैव कुटुंबकम

#प्रसिद्ध_नरेश

नेपाल में प्रदर्शन और  युवा असंतोष की खबरें आई। साथ साथ भारत में भी ऐसा हो कुछ लोगों ने कहा- बोला। हमें इन नेपाली युवाओं से सीखना चाहिए वगैरह वगैरह..... 

जो भी ऐसा बोले है उन्हें अपने विचारों को पूर्ण स्पष्ट करना चाहिए कि वे भारत के युवाओं को इन नेपाली युवाओं से क्या सीखने को कह रहे हैं  ?..... और क्यों ? 

1) क्या सरकार को बदलना हैं ?

 सरकार तो चुनावों के दौरान बदलती ही हैं। 

2) क्या यहां बेरोजगारी या परीक्षा / नौकरी भर्ती आदि को लेकर प्रदर्शन करना हैं  ? 

उपरोक्त मुद्दों पर तो प्रदर्शन तो होते ही रहे हैं। 

3) या कुछ और ही इरादे हैं  ? 

हाँ मुझे यही लगता हैं कि इरादे कुछ और ही हैं। भारत में अस्थिरता पैदा करना ही इनका उद्देश्य मालूम होता हैं। 



( विशेष सूचना : कुत्ते केवल अपने मालिक के प्रति ही वफादार होते हैं या जो उनको टुकड़े दे उसके प्रति। कुत्तों से सुरक्षा की पूरी व्यवस्था रखनी ही चाहिए।) 


भारत में भी नेपाली प्रदर्शनकारियों को सराहने व अराजकतावादी कहने वाले लोग है। मैं स्पष्ट कर दूँ मेरी दृष्टि में  वे अराजकतावादी कतई नही है। क्यों  ? 


'अनार्किस्ट ' जिसके लिये हिन्दी में 'अराजकतावादी' शब्द ही प्रयोग में लाया जाता हैं, यूनानी भाषा का शब्द हैं जिसका शाब्दिक अर्थ हैं - एन (नाट) , आर्कि (रूल) अर्थात शासनविहीन -- किसी भी प्रकार से शासित न होना। एक यूनानी दार्शनिक ने कहा था -



 "We wish neither to belong to the governing class nor to the governed. " अर्थात, हम न शासक बनना चाहते है और न ही प्रजा। 

भारत में  विश्व-भ्रातत्व और संस्कृत के वाक्य ' वसुधैव कुटुंबकम ' में भी यही भाव है। एक फ्रांसीसी दार्शनिक प्रूद्धों को अराजकतावाद का जन्म दाता कहा जाता हैं। 


अमर शहीद भगत सिंह के अनुसार :-

 अराजकतावाद के अनुसार जिस आदर्श स्वतंत्रता की कल्पना की जाती है  वह पूर्ण स्वतंत्रता हैं, जिसके अनुसार न तो मन पर भगवान या धर्म का भूत सवार हों, न माया या संपत्ति के लालच का जुनून समाया हुआ हों और न ही शरीर पर किसी प्रकार की सरकारी जंजीरे कसी हुई हो। 

1) भगवान व धर्म - हम छुटपन से बच्चों को यह बताना शुरू कर देते है कि सबकुछ भगवान हैं, मनुष्य तो कुछ भी नही। अर्थात मिट्टी का पुतला है। इस तरह के विचार मन में आने से मनुष्य में आत्मविश्वास की भावना मर जाती है। उसे मालूम होने लगता है कि वह बहुत निर्बल हैं। इस तरह वह भयभीत रहता हैं। जितने समय यह भय मौज़ूद रहेगा उतनी देर पूर्ण सुख और शांति नही हो सकती। 


2) स्टेट या सरकार - पंचायती राज स्थापित हुए, लेकिन पूर्ण स्वतंत्रता तब भी नही मिली। अराजकतावाद यानी राजसत्ता न रहे और लोग भ्रातत्त्व से रहे। 


मैकियावली इटली का राजनीतिज्ञ था। वह कहता था कि  राज कोई न कोई जरूर होना चाहिए। चाहे पंचायती हो या एक राजा का। लेकिन अराजकतावादी कहते है कि नरम और गरम क्या ?  हमे न पंचायती राज चाहिए और न कोई अन्य। वे कहते है-

Undermine the whole conception of a state and then only we have liberty worth having.

अर्थात राजसत्ता का विचार भी दुनिया मे खत्म किया जाए तभी कोई स्वतंत्रता प्राप्त हो सकेगी। 

3) निजी संपत्ति - संपत्ति बनाने का विचार मनुष्यों को लालची बना देता हैं। वह फिर पत्थर-दिल होता चला जाता हैं। दयालुता और मानवता उसके मन से मिट जाती हैं। संपत्ति की सुरक्षा के लिए राजसत्ता की  आवश्यकता होती है। इससे फिर लालच बढ़ता है और अंत में परिणाम पहले सम्राज्यवाद, फिर युद्ध होता हैं।


वास्तव में दुनिया को पेट का सवाल ही चला रहा है। इसके लिए ही धैर्य, संतोष आदि उपदेश गढ़े गए। सभी कुछ इसके लिए ही किया जाता रहा। अब अराजकतावादी, साम्यवादी, समाजवादी सभी संपत्ति के विरुद्ध हो गए है। 


ऐसा प्रश्न जरूर उठेगा कि क्या मनुष्य को फिर से जंगली बनाना हैं ? 

नहीं बिलकुल नहीं। सच तो ये हैं कि आज तक किसी मनुष्य को पूर्ण स्वतंत्रता दी ही नही गई। 


 अनार्किज्म एंड अदर एसेज़ पुस्तक के अनुसार (लेखिका एमा गोल्डमैन) -


"Every fool from king to policeman, from the flat headed person to the visionless dausier in science presumes to speak authoritatively of human nature "


 #शुभ_शुभ

#प्रसिद्ध_नरेश

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