चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि : भगवान श्रीकृष्ण के जल विहार एवं तुलादान के बाद सोमवार को 56 प्रकार के व्यंजनों से भगवान का महाभोग लगाया गया। साथ ही विशाल भण्डारे का आयोजन किया गया। जिसमें गरीबों को भोजन कराकर वस्त्र देकर सम्मानित किया गया। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव के मंगल उत्सव की 50वीं वर्ष गांठ के अवसर पर प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पं नारायण दत्त त्रिपाठी ने बताया कि एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र देव के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था। तब उन्हें लगातार सात दिन तक भूखा रहना पड़ा था। इसके बाद उन्हें 7 दिनों और 8 पहर के हिसाब से 56 व्यंजन खिलाए गए थे। इस घटना के बाद से ही भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाने की परम्परा आरम्भ हुई। उन्होंने बताया कि भण्डारे की परम्परा भारत में प्राचीन काल से चली आ रही है। समय के साथ अब इसका स्वरूप बदल गया है। प्राचीन काल में यह अन्नदान के रूप में जाना
जाता था। अन्न दान का उल्लेख शास्त्रों और पुराणों में कई स्थानों पर किया गया है। पुरातन काल में राजा महाराजा यज्ञ हवन और धार्मिक अनुष्ठन करवाते थे। इनमें गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र वितरित किया जाता था। आज वही परम्परा भण्डारें के रूप में विकसित हो गयी है। उन्होंने बताया कि संसार में सबसे बडा दान अन्न दान है। अन्न से ही यह संसार बना है और अन्न से ही इसका पालन हो रहा है। अन्न से शरीर और आत्मा दोनों की संतुष्टि होती है। ऐसे में अन्नदान सभी प्रकार के दान से उत्तम है। उन्होंने बताया कि पद्म पुराण के श्रृष्ठि खण्ड में एक कथा का उल्लेख किया गया है। जिसमें ब्रम्हा और विदर्भ के राजा श्वेत के बीच हुए संवाद से पता चलता है कि जो व्यक्ति अपने जीवन काल में जो भी दान करता है उसे वही वस्त्र मृत्यु के बाद परलोक में प्राप्त होती है। इस मौके पर भाजपा जिलाध्यक्ष लवकुश चतुर्वेदी, जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष पंकज अग्रवाल, नगर पालिका अध्यक्ष नरेन्द्र गुप्ता, समाजसेवी कमलेश मिश्रा, गुड्डन दुबे, अंकुर त्रिपाठी, अनुज त्रिपाठी आदि मौजूद रहे।
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