जानकीकुंड का धार्मिक महत्व
चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि । प्रभु श्रीराम की तपोस्थली के रूप में अपने धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व के चलते चित्रकूट सदैव श्रद्धालुओं का केंद्र रहा है। यह वही पवित्र भूमि है, जहां प्रभु श्रीराम, माता सीता व भाई लक्ष्मण ने अपने वनवास के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताये थे। इसी धार्मिक नगरी में स्थित है जानकी कुंड। जो माता सीता के स्नान व श्रंगार की स्मृतियों से ओतप्रोत है। ज्ञात है कि जानकीकुंड सद्गुरु नेत्र चिकित्सालय के निकट स्थित है। ये वह स्थान है जहां माता सीता वनवास के दौरान स्नान को पानी लिया करती थीं। यहां एक छोटा स्नान स्थल भी है। जहां माता सीता अपने श्रंगार करती थीं। मान्यता है कि माता सीता के चरणों की कोमलता के कारण जिस स्थान पर उन्होंने
मन्दिर में लगी श्रद्धालुओं की भीड। |
श्रंगार किया, वह भूमि भी उनके स्पर्श से कोमल हो गई। आज भी वहां माता के चरण चिन्ह स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं, जो श्रद्धालुओं को धन्य अनुभव कराते हैं। हर दिन इस स्थल पर सैकड़ों भक्त आते हैं। जो दूर-दूर से माता सीता के चरण चिन्हों के दर्शन करने को यहां पहुंचते हैं। जानकीकुंड में आकर श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। उनके जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है। धर्मनगरी चित्रकूट में स्थित जानकी कुंड आस्था व विश्वास का एक ऐसा केंद्र बन गया है, जहां सदियों से धर्म व संस्कृति की जड़ें गहरी हैं। श्रद्धालुओं का यह पवित्र स्थल आज भी धार्मिक आस्था का प्रतीक बना हुआ है।
No comments:
Post a Comment