जैन चैत्यालय में सुधा दीदी ने किए प्रवचन
बांदा, के एस दुबे । पर्यूषण पर्व के तीसरे दिन ,छोटी बाजार स्थित जैन चैत्यालय जी मे उत्तम आर्जव् धर्म के बारे में बताते हुए बाल ब्रह्मचारिणी दीदी सुधा बहिन जी ने बताया कि आत्मा का स्वभाव ही सरल स्वभाव है, इसलिये प्रत्येक प्राणी को सरल स्वभाव रखना चाहियें। यदि यह् आत्मा अपने सरल स्वभाव से हटकर पर-स्वभाव में रमते हुए कुटिलता से युक्त होति है तो यह आत्मा नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव इन चारों गतियों में भ्रमण करती रह्ती है लेकिन परम धाम अर्थात मोक्ष को प्राप्त नहीं होती इसलिए सरल रहना चाहिए छल् , कपट नहीं होना चाहिए। मन निर्मल, पवित्र और सद्गुणों से युक्त होना चाहिए । बहिन जी ने कहा कि धर्म का श्रेष्ठ लक्षण आर्जव है। आर्जव का अर्थ सरलता है। मन-वचन-काय की कुटिलता का अभाव आर्जव है अर्थात_पाखंड ओर कुटिलता का त्याग करना ही आर्जव धर्म है, भक्त् यदि कुटिलता पूर्ण आचरण ह्दय मे रखता है तो वह भगवान की सच्ची भक्ति,आराधना नही सकता ।छल, कपट त्यागे बिना धर्म नहीं हो सकता,
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| प्रवचन करतीं सुधा दीदी। |
उत्तम आर्जव नीति बखानी, रन्चक दगा बहुत दुख दानी। मन मे होय सो वचन उचरिये,वचन होय सो तनसो करिये। अर्थात जो मन मे हो वही वचन मे होना चाहिए ओर वही काया से भी दिखना चाहिए। ये नही कि ,मन मे कुछ ओर वचन मे कुछ,यही मायाचारी कहलाती है। उन्होंने कहा की जो व्यक्ति अत्यधिक छल कपट करता है उसका पुनर्जन्म पशुगति में होता है । इसलिए दिन-रात आत्मा का चिंतन करना चाहिए आत्मा में ही सच्चा सुख है, धन संपदा लक्ष्मी यह पुण्य कर्म के उदय से आती है ना की छल कपट से, अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन केवल दश वर्ष तक साथ रहता है, परंतु ग्यारहवां वर्ष लगते ही वह समूल नष्ट हो जाता है। मायाचारी का धन बिजली के समान क्षणिक है। सदाचारी की कमाई से उसकी तुलना किसी अंश में भी नहीं हो सकती। अतएव ऐसे कल्याणकारी आर्जव धर्म को सदा धारण करना चाहिए। इसके उपरांत भक्तों ने मां जिनवाणी की स्तुति की एवं भजन कीर्तन करते हुए आरती की।


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