डाकुओं की पनाहगाह रहे कोल्हुआ जंगल की अब पर्यटन स्थल के रूप में बढ़ रही पहचान
अरशद वारसी और राजपाल यादव ने की थी फिल्म शूटिंग, प्राकृतिक सुंदरता को जमकर सराहा
बदौसा, के एस दुबे । सैर कर दुनियां की गाफिल जिंदगानी फिर कहां, जिंदगी गर रही तो फिर ये जवानी कहां। राहुल सांकृत्यायन का ये प्रसिद्ध उदाहरण उन लोगों के लिए है, जिन्हे घूमना बहुत ही पसंद है। आनंद या खुशी प्राप्त करने का एक जरिया घूमना या फिर यात्रा करना भी है। जिन लोगों को घूमने में मजा आता है, वो कुछ ऐसी जगह जाना पसंद करते हैं, जहां वह प्राकृतिक या प्राचीन कलाकृतियों और उनकी सुंदरता का आनंद ले सकें। उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के सरहदी इलाके के बांदा व चित्रकूट जनपद के बीच फैला कोल्हुआ जंगल कभी मिनी पाठा के नाम से कुख्यात था। जंगल का नाम आते ही लोगों के जेहन में डकैतों के खौफ से सिहरन दौड़ जाती थी। लेकिन अब यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। बस जरूरत सिर्फ प्रकृति के प्रशंसकों तक यह जानकारी पहुंचाने की है। जंगल की भीनी खुशबू, अप्रतिम सौंदर्य का एहसास, जिसे देखकर आप खुद ही तारीफ कर उठेंगे। वहां पर खामोशी के बीच अगर आपको कुछ सुनाई देगा तो वह कुदरत की ओर से प्रकृति को बख्शे गए नायाब तोहफों के अस्तित्व की आवाज होगी। यानी नदियों की झरनों की, जंगल के इस क्षेत्र में लगे हजारों पेड़ों के अनगिनत पत्तों की, इन पेड़ों पर बने घोंसलों में अपने परिवार के साथ बतियाते पक्षियों की, जिन्हें सुनकर सुकून मिलता है। यहां विचरण करते वन्य जीव कभी डराते हैं, कभी रोमांच पैदा करते हैं।
कोल्हुआ जंगल के समीप गोड़रामपुर के पास स्थित सकरों जल प्रपात। |
दूर-दूर तक घने जंगलों में हजारों पेड़ों के बीच विचरण करना प्रकृति प्रेमियों के लिए सबसे खुशनुमा अहसास है। यहां पर पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। जरुरत है तो सिर्फ प्रकृति और कुदरत का अनुपम कृति के रूप में सैलानियों के लिए तैयार है। कल-कल बहते झरने घने जंगल पक्षियों का कलरव बहती नदियां, हरे भरे पहाड़ों का सौंदर्य लोगों को लुभा रहा है। यहां पर पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।
जंगल क्षेत्र में अन्य प्रमुख स्थल-
- बिल्हारिया मठ: बिल्हारिया मठ की ऊंचाई 22 मीटर है। इतिहासकारों के मुताबिक, चंदेलकालीन मठ का निर्माण भरतवंशी राजाओं ने कराया था। चंदेल युग के बाद यह बघेलों के राज्य में रहा। खजुराहो शैली में बना यह मठ अपने आप में अद्भुत है पुरातत्व विभाग के संरक्षण में यह मंदिर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
- वीरगढ़ दुर्ग: वीरगढ़ दुर्ग की ऊंचाई में एक देवी मंदिर है। प्रवेश द्वार वर्तमान समय में नष्ट हो चुका है। दुर्ग शिल्प की दृष्टि से वनीय दुर्ग एवं पर्वतीय दुर्ग श्रेणी में आता है। बघेल राजा अपनी सेना इसी दुर्ग में रखते थे। यहां स्थापित देवी मंदिर दस्यु दलों के लिए आराधना का केंद्र रहा है।
फतेहगंज के बघोलन में खजुराहो शैली में बना बिल्हरिया मठ मंदिर। |
- चट्टानों पर बने हैं शैलचित्र: वीरगढ़ मंदिर से पूरब की ओर चुड़ैल गुफ़ा पहाड़ी की ऊंचाई पर शैलाश्रय मिलता है। इस शैलाश्रय के पास एक छोटा सा जल प्रपात है। चट्टानों पर गेरुआ रंग से कुछ चित्र बने हुए हैं। ये चित्र कलात्मक दृष्टि से बड़े सुंदर हैं, ये उत्तर पाषाण युग के हैं।
- बाणगंगा नदी: कोल्हुआ जंगल के चित्रकूट जनपद की सीमा में स्थित बाणगंगा के विषय में बुजुर्गवार बताते हैं कि बाणगंगा के उद्गमस्थल का पानी कभी सूखा नहीं है। स्थल में अर्जुन के बाण लगने से पानी निकला था। आज भी जल की अविरल धारा बह रही है।
कोल्हुआ जंगल के अंदर बहता बाणगंगा नदी का निर्मल पानी। |
- सकरों जल प्रपात: बाणगंगा से दक्षिण दिशा में की तरफ़ जाने पर सकरो जलप्रपात का पानी लगभग तीन सौ मीटर ऊपर से गिरता दिखाई देगा, जो दर्शनीय है। किंवदंती है कि यह शुक्राचार्य की तपोस्थली रही है। इसी से इसका अपभ्रंश नाम सकरो पड़ा।
- फतेहगंज के गोबरी गोड़रामपुर से स्थानीय गोंड आदिवासियों को साथ लेकर जंगल के रास्ते इस प्राकृतिक स्थल तक पहुंच कर इसके सौंदर्य का नज़ारा लिया जा सकता है। बरसात के दिनों में यह अपने पूरे शबाब में रहता है।
- मड़फा दुर्ग: पड़ोसी जिला चित्रकूट के मानपुर के पास विंध्याचल पर्वत की हरी-हरी पहाड़ियों पर पांच मुख आठ भुजाओं वाले क्रोधित स्वरूप में विराजे शिव का धाम मड़फा साहसिक पर्यटन प्रेमियों के लिए यह धार्मिक, ऐतिहासिक शानदादार स्थल।
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