अश्विन मास की चतुर्दशी के बाद अमावस्या आती है जिसे पितृविसर्जनी अमावस्या या महालया भी कहते है इस वर्ष अमावस्या तिथि 1 अक्टूबर को रात्रि 09:39 से प्रारम्भ होकर 2 अक्टूबर देर रात 12:59 तक रहेगी। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध किया जाता है जिन पितरों की पुण्यतिथि परिजनों को ज्ञात नहीं हो या जिनका श्राद्ध पितृपक्ष के 15 दिनों में ना किया गया हो तो उनका श्राद्ध, दान, एवं तर्पण इसी दिन करते है। इस तिथि को समस्तों पितरों का विसर्जन होता है। श्रीमदू भगवद् गीता का पाठ हरिवंश पुराण पितृ गायत्री का जप करने से भी पितृ शान्त होते है।
अमावस्या को दिन में गोबर के कंडे जलाकर उस पर खीर की आहुति दें। और जल के छींटे देकर हाथ जोड़े और पितरों को नमस्कार करें। गाय को ग्रास , कुत्ते, कौवे और चीटियों को भी भोजन देने से पितृ शान्त होते है। प्रत्येक माह की अमावस्या पितरों की पुण्यतिथि मानी गयी है। हरिद्वार, गया, पुष्कर, प्रयाग, नर्मदा, गोदावरी, गंगातट, उज्जैन, पुरी, काशी , त्र्यंबकेश्वर आदि पुण्य क्षेत्रों में किया गया श्राद्ध तीर्थ श्राद्ध कहा जाता है जो व्यक्ति अपने पितरों का अमावस्या को श्राद्ध दान करते है तो पितर दोष से मुक्त हो जाता है और पितृ प्रसन्न होकर आर्शीवाद देते है और व्यक्ति के समस्त मनोरथ पूर्ण होते है
- ज्योतिषाचार्य-एस.एस.नागपाल, स्वास्तिक ज्योतिष केन्द्र, अलीगंज, लखनऊ।
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