फतेहपुर, मो. शमशाद खान । अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा ने शौर्य दिवस बाईपास स्थित सैनिक गेस्ट हाउस में सैनिक प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष वीर सिंह यादव की अध्यक्षता में मनाया। 1962 की लड़ाई में शहीद हुए 114 वीर सैनिकों को याद करते हुए 5100 दीप जलाकर उनको भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की। जिलाध्यक्ष राजेश चैधरी ने कहा कि यह कार्यक्रम लगातार पांच वर्षों से किया जा रहा है। उन्होने बताया कि रेजांगला युद्ध का इतिहास के सबसे भयंकर युद्ध के रूप में याद किया जाता है। इस युद्ध में अहीरवाल के वीर रणबांकुरों ने जो बलिदान दिया था उसको याद करते ही सीना गर्व से चैड़ा हो जाता है। सेना के जवानों ने 18 नवंबर 1962 को लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर शहादत का ऐसा इतिहास लिखा था, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। रेजांगला जम्मू-कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र में चुशुल घाटी में एक पहाड़ी दर्रा है। 1962 के भारत-चीन युद्ध में 13 कुमाऊं दस्ते का यह अंतिम मोर्चा था। इन जवानों ने 1300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। सैन्य इतिहास में किसी एक
5100 दीप जलाकर शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि देते यादव महासभा के पदाधिकारी। |
बटालियन को एक साथ बहादुरी के इतने पदक नहीं मिले। रेजांगला युद्ध में शहीद हुए वीरों में मेजर शैतान सिंह पीवीसी जोधपुर के भाटी राजपूत थे। जबकि नर्सिंग सहायक धर्मपाल सिंह दहिया (वीर चक्र) सोनीपत के जाट परिवार से थे। शेष सभी जवान वीर अहीर थे व इनमें अधिकांश यहां के रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ व सीमा से सटे अलवर के रहने वाले थे। उस युद्ध में जीवित बचने वाले भारतीय जवानों में से कैप्टन रामचंद्र भी एक थे। वह 19 नवंबर को कमान मुख्यालय पहुंचे थे और घायल होने के कारण 22 नवंबर को उनको जम्मू स्थित एक आर्मी अस्पताल में ले जाया गया था। रामचंद्र का मानना था कि वह जिंदा इसीलिए बचे ताकि पूरे देश को रेजांगला युद्ध की वीर गाथा बता सके। कैप्टन रामचंद्र को वीर चक्र दिया गया था। जिलाध्यक्ष चैधरी राजेश यादव ने कहा कि भारत की माटी से एक वीर विदा हो गया है। उनकी वीरता का जितना सम्मान किया जाए उतना कम है। इस मौके पर धीर सिंह यादव, अनुज यादव, विनय यादव, सूर्यभान, संजय सिंह, प्रशांत सिंह, रामचंद्र, मानसिंह, ज्ञान सिंह, सुनील यादव, रूप सिंह, देवेंद्र सिंह, राजेंद्र, अर्जुन, नमिता यादव एडवोकेट, इंद्रजीत यादव भी मौजूद रहे।
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