मोहर्रम की नवीं व दसवीं का रोजा रखना अफजल
मोहर्रम के बचे हुए दिनों को सादगी के साथ मनाने की अपील
फतेहपुर, मो. शमशाद । हर साल पहली मोहर्रम से इस्लामी नए साल की शुरूआत होती है और मुस्लिम समाज में ज्यादातर ऐसे लोग हैं जिनको मालूम नहीं कि इस्लामी साल का पहला महीना मुहर्रमुल हराम है। काजी शहर कारी फरीद उद्दीन कादरी ने कहा कि मुस्लिम समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो मुहर्रम का चांद नजर आते ही ढोल और ताशों को संवारने में लग जाते हैं। ऐसे-ऐसे काम करते हैं जिनका शरीयत से कोई ताल्लुक नहीं होता। ऐसे लोगों को कुछ मालूम नहीं होता कि इस माह मुबारक और आशूरे की क्या फजीलत है। इस महीने को मोहर्रमुल हराम क्यों कहा जाता है? हालांकि मुहर्रमुल हराम का मतलब इज्जतो हुरमत वाला महीना है और कुछ लोग ऐसे भी है जो मुहर्रमुल हराम के चाँद देखने का इंतजार करते है। शौके इबादत में ये लोग मोहर्रम की पहली तारीख से ही रोजे
काजी शहर फरीद उद्दीन। |
रखना शरू कर देते हैं और लगातार दस रोजे रखते हैं। उन्हें मालूम है कि इन रोजों का बड़ा सवाब है। रमजान शरीफ के रोजों से पहले यही रोजे फर्ज थे। अगर किसी के रमजान शरीफ के रोजे छूट गए तो उन छूटे हुए रोजों की कजा इन दिनों में भी हो सकती है। चाहे मर्द हो या औरत इन रोजों का सवाब भी मिलेगा। रमजान शरीफ के कजा रोजों की अदाएगी भी हो जाएगी। काजी शहर कादरी ने कहा कि आशूरा के दिन का रोजा रखना सुन्नत है। जो बहुत फजीलत रखता है। इसलिए मोहर्रम की नवी और दसवीं दोनों तारीख को रोजा रखना अफजल है। पैगंबरे इस्लाम के फरमान के मुताबिक दस मोहर्रम का रोजा साल भार के गुनाहों का कफ्फारा है। उन्होंने कहा कि मुहर्रमुल हराम के बचे हुए दिनों को बहुत ही सादगी के साथ मनाएं। नमाज की पाबंदी के साथ-साथ कुरआने पाक की तिलावत करें। गरीबों, यतीमों और बेवाओ को ढूंढ कर उनकी जरूरत व मुसीबत दूर की जाए और कोई ऐसा गैर शरई अमल न करें। जिससे किसी की दिल आजारी हो। खुसूसियत के साथ मोहर्रम व बिरादराने वतन के त्योहारों को मद्देनजर रखते हुए एकता व भाईचारे की मिसाल कायम करें।
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