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Thursday, August 22, 2024

हलषष्ठी 24 अगस्त को

हरछठ (हलषष्ठी) व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी शनिवार 24 अगस्त को सुबह 07 बजकर 51 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 25 अगस्त को सुबह 05 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी। अतः 24 अगस्त को बलराम जयंती मनाई जाएगी। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि पर वृद्धि योग का निर्माण हो रहा है। इस योग का संयोग पूर्ण रात्रि तक है। इसके साथ ही रवि योग का भी संयोग बन रहा है। वहीं, शिववास योग का संयोग सुबह 07 बजकर 51 मिनट तक है। इन योग में बलराम जी की पूजा कर सकते हैं। ये पर्व भगवान कृष्ण के बड़े भाई श्री बलराम जी के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है। बलराम जी का शस्त्र हल और मूसल है। इसी कारण इनको हलधर भी कहते है।  धार्मिक मान्यता के अनुसार, बलराम जी शेषनाग के अवतार थे । इनके पराक्रम की अनेक कथाएँ पुराणों में वर्णित हैं। ये गदायुद्ध में विशेष प्रवीण थे। दुर्योधन इनका ही शिष्य था। इस दिन हल पूजन का विशेष महत्व है। इसे हल छठ पीन्नी छठ या खमर छठ भी कहते हैं  पूरब के जिलों में इसे ‘ललई छठ’ भी कहा जाता है। माताएं हलषष्ठी का व्रत


संतान की लंबी आयु की प्राप्ति के रखती हैं. इस दिन व्रत के दौरान वह कोई अनाज नहीं खाती हैं. तथा महुआ की दातुन करती हैं. हलषष्ठी व्रत में हल से जुती हुई अनाज और सब्जियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता. इस व्रत में वही चीजें खाई जाती हैं जो तालाब में पैदा होती हैं. जैसे तिन्नी का चावल, केर्मुआ का साग, पसही के चावल खाकर आदि. इस व्रत में गाय के किसी भी उत्पाद जैसे दूध, दही, गोबर आदि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. व्रत के दिन घर या बाहर कहीं भी दीवाल पर छठ माता का चित्र बनाते हैं. उसके बाद गणेश और माता गौरा की पूजा करते हैं. महिलाएं इस दिन जमीन को लीप कर घर में ही एक छोटा सा तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं और वहां पर बैठकर पूजा अर्चना करती हैं और हल षष्ठी की कथा सुनती हैं. हल षष्ठी व्रत महिलायें अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए रखती हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान हलधर उनके पुत्रों को लंबी आयु प्रदान करते हैं.

-ज्योतिषाचार्य-एस.एस.नागपाल, स्वास्तिक ज्योतिष केन्द्र, अलीगंज, लखनऊ।

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