मानिकपुर/चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि । श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन आचार्य नवलेश दीक्षित ने कहा कि विधि के विधान को टाला नहीं जा सकता। भगवान श्रीकृष्ण सर्व सार्मथ्यवान ईश्वर होते हुए भी अपने सगे भांजे अभिमन्यु को नहीं बचा पाए। यही तो गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं तुलसी इस धरा को प्रमान यही जो फरा सो छरा जो बरा सो बुतानो। इसलिए इस संसंार में ईश्वर की इच्छा अकाट्य है। उस परमात्मा के बिना एक भी पत्ता हिल नहीं सकता। भागवत कथा व्यक्ति को निर्भयता प्रदान कराती है। निःसंदेहता को मिटाकर हृदय में प्रभु का साक्षात्कार कराती है। जब कभी मन व्यथिात हो तब द्रौपदी, कुंती, सुभद्रा, उत्तरा का प्रसंग स्मरण कर लेना चाहिए कि ऐसी महान भक्तो के जीवन में कैसा संकट आया है। जिनके पास स्वयं भगवान कृष्ण सदैव रहते थे।
कथा व्यास नवलेश दीक्षित। |
शनिवार को ये बात मानिकपुर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन भागवतरत्न आचार्य नवलेश दीक्षित ने कही। उन्होंने पांडव चरित्र, विदुर चरित्र, भीष्म कथा, शुक संवाद, महाराज मनु सतरूपा की कथा का विस्तार से वर्णन किया। आकूति रुचि प्रजापति से यज्ञ एवं दक्षिणा दो संताने देवहुति से नौ कन्याएं जो साक्षाात नवधा भक्ति स्वरूपा थी। जिससे सृष्टि का विस्तार हुआ तथा एक पुत्र कपिल का प्रार्दुभाव हुआ। जिन्होंने मां को पावन उपदेश देकर गंगा सागर में प्रवेश कर गए। इसीलिए कहा गया है सारे तीर्थ बार-बार गंगा सागर एक बार। इस मौके पर कथा आयोजक डा विभांशु कुशवाहा सदस्य भारतीय चिकित्सा परिषद अपने पिता जेपी कुशवाहा की स्मृति में आयोजन कर रहे हैं। मुख्य यजमान फूलमती देवी, पूर्व ब्लाक प्रमुख विनोद कुमार द्विवेदी, संतोष कुशवाहा समेत बडी तादाद में श्रोतागण मौजूद रहे। आरती के पश्चात प्रसाद वितरित किया गया।
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