श्रीमद्भागवत कथा में मानव की चार अवस्थाओं की हुई व्याख्या
बबेरू, के एस दुबे । जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और जिसकी मृत्यु हुई है, उसका जन्म भी निश्चित है। यह बात अतर्रा रोड में करवरिया परिवार की ओर से आयोजित श्रीमद्भागवत कथा का बखान करते हुए आचार्य अभिषेक शुक्ल कही। उन्होंने कहा कि किसी भी मानव की मृत्यु का कारण कुछ भी हो सकता है। आश्रम की दृष्टि से मानवमात्र की चार अवस्थाएं हैं। मनुष्य प्रथम अवस्था में शिक्षा ग्रहण करता है। अपने गुणों का विकास करता है,वैदिक धर्म में यही अवस्था ब्रह्मचर्य आश्रम के नाम से अभिहित है, द्वितीय अवस्था में मनुष्य अर्थाजन करता है।
कथा बखान करते आचार्य अभिषेक शुक्ला |
उससे भौतिक सुखों को प्राप्त करता है,इसे ही हमारी संस्कृति में गार्हस्थ्य-आश्रम कहा जाता है। तृतीय अवस्था में मनुष्य अपने परिवार और समाज व राष्ट्र के लिए कुछ करना चाहता है। भौतिक सुखों से थोड़ा विरत होता है। इसी अवस्था को ऋषिजन वानप्रस्थ आश्रम कहते हैं। जीवन की अन्तिम अवस्था में मनुष्य,न चाहते हुए भी,आत्मकल्याण के पथ पर,किसी न किसी रूप में, अग्रसर होता है। वैदिकधर्मानुसार यह अवस्था संन्यास-आश्रम के नाम से अभिहित होती है। रासलीला की कथा का वर्णन करते हुए कहा की भगवान ने गोपियों के साथ जैसे ही नृत्य करना
मौजूद श्रोतागण |
प्रारम्भ किया। गोपिकाओं के मन में मद और मान जागृत हो गया, जिसका दर्शन करते ही भगवान् सद्य: अंतर्ध्यान हो गए,गोपियों ने भगवान् को विविध भांति खोजते हुए गोपी गीत गाया, जिसके दिव्य भावों को बड़ी ही वैदुष्यता के साथ वर्णित किया,अक्रूर आगमन,कंस वध,भ्रमरगीत आदि कथाओं का वर्णन करते हुए रुक्मिणी विवाह की कथा सम्पन्न हुई। इस अवसर पर आयोजक पूर्व प्रवक्ता गयाप्रसाद करवरिया, शैलेन्द्र मिश्रा, अनूप तिवारी, डॉ. इन्द्रनारायण, राजू मिश्रा, जिला पंचायत अध्यक्ष सुनील पटेल आदि विशाल जन समुदाय उपस्थित रहा।
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