कथा का छठा दिवस
चित्रकूट ब्यूरो, सुखेन्द्र अग्रहरि : भगवान श्रीकृष्ण स्वयं पुरूषोत्तम है। परमात्मा द्वादश अंग परिपूर्ण होता है। ऐसे में निःस्वार्थ भाव से की गई भगवान की भक्ति जीव का कल्याण करती है। यह विचार जिला मुख्यालय स्थित कमल निवास में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठें दिवस कथा वाचक आचार्य डॉ बृजेश कुमार पयासी ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि दशम स्कन्ध में श्रीकृष्ण की निरोध लीला वर्णित है। अन्य स्कन्ध साधन है, तो दशम स्कन्ध साध्य है। दशम स्कन्ध ऐश्वर्य और माधुर्य से परिपूर्ण पुरूषोत्तम श्रीकृष्ण की महिमा को स्पष्ट करता है। इसमें भी रास पंचाध्यायी सर्वोपरि है। श्रीकृष्ण के चरणबिंद की सम्प्रति जिस विधि से भी हो सके, वही निरोध का स्वरूप है। निरोध में श्रीकृष्ण की लीला का गान ही सबकुछ है। जिसमें समस्त वासना का लय हो जाए, वहीं लीला है। लीला का यह मार्ग ही प्राणिमात्र को श्रीकृष्ण की प्राप्ति करा देता है। रास पंचाध्यायी का प्रारम्भ ही भगवान शब्द से है। यह लीला मनुष्य की नहीं भगवान की है। यह समझाने के लिए भगवान शब्द से यह प्रकरण प्रारम्भ है। सुकदेव महराज ने
सम्पूर्ण हरि लीला को स्पष्ट और सर्वजन सुलभ करके एक प्रवाही नदी के रूप में उसका गायन किया है। उनके द्वारा किए गए रास का वर्णन कूप जल के समान है। जिसका जल लेने के लिए रस्सी और पात्र दोनो अपेक्षित है। श्रीकृष्ण में निरोध स्वभाव सिद्ध है। काम उनका पुत्र है, श्रीकृष्ण दयालु और समर्थ दोनों है। गोपियां इस रहस्य को जानती है। इसके चलते वह चतुर्विध पुरूषार्थ, यहां तक कि बैकुण्ठ के प्रति भी अनाशक्त होकर रास में शामिल हुईं थीं। रास उसी भगवान की लीला है। इस मौके पर कथा श्रोता सोमा शुक्ला, पूर्व विधायक आनंद शुक्ला, शिखा मनीष शुक्ला, देवेन्द्र त्रिपाठी, सरिता त्रिपाठी, सतीश तिवारी, आद्विक त्रिपाठी, आदर्श मिश्रा उर्फ अंश पंडित, शेखर मिश्रा, हेमराज चतुर्वेदी, योगेश जैन, शिवशंकर त्रिपाठी, रामसागर चतुर्वेदी आदि मौजूद रहे।
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