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Saturday, June 1, 2024

कांग्रेस की बराबरी कर पाएगी भाजपा, या गठबंधन रोकेगा सफलता की राह

अब तक हुए संसदीय चुनाव में पांच बार जीत हासिल कर चुकी है कांग्रेस

चार कामयाबी के साथ इस सीट पर दूसरी पायदान पर काबिज है भाजपा 

फतेहपुर, मो. शमशाद । फतेहपुर संसदीय सीट पर पांच मर्तबा जीत हासिल कर लंबे समय तक सिरमौर बनी रही कांग्रेस इस चुनाव में भाजपा बराबरी कर पाएगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि भाजपा चार जीत के साथ फिलवक्त इस सीट की नंबर दो पार्टी है। जिसने दो मर्तबा से यहां की सांसद साध्वी निरंजन ज्योति तीसरी जीत के लिए मैदान में उतारा था। साध्वी का इस चुनाव में सीधा मुकाबला इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार नरेश उत्तम पटेल से हैं। इस मुकाबले में साइकिल को कांग्रेस के हाथ का साथ मिला है। ऐसे में क्या सपा व कांग्रेस की जुगलबंदी, भाजपा को रोक पाएगी। यह ऐसा सवाल है जिसके उत्तर का बेसब्री से इंतजार सभी को है क्योंकि इस बार जिस तरह की लडाई देखने को मिली है। उससे भाग्यविधाताओं की उछाली गई गेंद किस पाले में गिरती है। इसका सटीक जवाब अभी तक नहीं मिल सका है।


फतेहपुर संसदीय सीट के लिए पहला चुनाव वर्ष 1957 में हुआ था। इस चुनाव में अंसार हरवानी को कामयाबी मिली थी जो कांग्रेस से मैदान में उतरे थे। वर्ष 1962 के चुनाव में यहां की जनता ने निर्दलीय प्रत्याशी गौरी शंकर को संसद भेजने का काम किया था। इसके बाद वर्ष 1967 के चुनाव में फिर कांग्रेस विनिंग ट्रैक पर लौट आई। यह चुनाव संत बक्श सिंह ने जीता। इन्हीं संत बक्श सिंह को वर्ष 1971 के चुनाव में चुना गया। एक के बाद एक संसदीय चुनाव में दो सफलताएं हासिल करने वाली कांग्रेस को 1977 के चुनाव मेंं फतेहपुरियों ने जनता ने नापंसद करते हुए जनता पार्टी के बशीर अहमद को बडी संसद पहुंचाने का काम किया। हालांकि यह कार्यकाल पूरा नहीं हो सका। बशीर की मौत के बाद वर्ष 1978 में हुए उप चुनाव में जनता पार्टी ने सै लियाकत हुसैन को उम्मीदवार बनाया और वह चुनाव जीत गए। इसके बाद कांग्रेस का फिर युग लौटा और 1980 और 1984 के चुनाव में यहां से पूर्व प्रधानमं़त्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे हरि किशन शास्त्री ने लगातार चुनाव जीता। यहीं से कांग्रेस की इस सीट पर उलटी गिनती शुरू हो गई। वर्ष 1989 में हुए चुनाव में इस सीट से जनता दल से राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह चुनाव जीते थे। राजा मांडा की आंधी 1991 में चली और वीपी सिंह को दोबारा चुनकर प्रधानमंत्री की कुर्सी में बिठाने का काम किया गया। वर्ष 1996 में इस सीट पर बसपा का उदय हुआ और विशंभर प्रसाद निषाद को चुनाव गया। इसी के बाद भाजपा ने भी यहां पर इंट्री मारी। वर्ष 1998 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार डॉ अशोक पटेल को यहां की जनता ने सिर आंखों पर बिठाने का काम किया। यह सिलसिला एक साल बाद हुए चुनाव में भी बरकरार रहा और अशोक पटेल को 1999 के चुनाव में भी कामयाबी मिली। इन दो जीत हासिल करने के बाद भाजपा को दो पंचवर्षीय तक इंतजार करना पडा। वर्ष 2004 में इस सीट से बसपा को फिर कामयाबी मिली। बसपा उम्मीदवार महेंद्र प्रसाद निषाद ने यह चुनाव जीता। इस निर्वाचन के बाद यहां से सपा को सफलता मिली और पार्टी प्रत्याशी राकेश सचान संसद का प्रतिनिधित्व करने को चुने गए। वर्ष 2014 में भाजपा फिर लौटी। पार्टी की उम्मीदवार साध्वी निरंजन ज्योति ने यह चुनाव जीतने के बाद अपना विनिंग ट्रैक पर दौडना बरकरार रखा। साध्वी ने वर्ष 2019 का चुनाव और बडी कामयाबी के साथ जीता। इस तरह से देखा जाए तो अब तक कांग्रेस यहां से पांच चुनाव जीत चुकी है जबकि भाजपा चार जीत के साथ सफलता की दूसरी पायदान पर काबिज है। ऐसे में सवाल उठता है कि इस चुनाव में क्या भाजपा फिर करामात कर सकेगी। यह सवाल इसलिए भी उठना लाजिमी है क्योंकि एक तरफ जहां एनडीए गठबंधन 400 पार जाने की बात कर रहा है तो इंडिया गठबंधन की तरफ से चार जून को चौंकाने वाले परिणाम आने का भरोसा पाल रखा गया है। राजनीतिक जानकारों की माने तो यकीनन अभी तक चुनाव के परिणाम, भविष्य की गर्त में छिपे हैं लेकिन इस बार राह इतनी आसान भी नहीं है। इनका कहना है कि भाजपा को पसंद तो किया गया लेकिन सपा को भी नजरदांज नहीं किया जा सकता है। जिस तरह से यह चुनाव अब तक नजर आ रहा है। उससे 72 घंटे बाद आने वाला परिणाम कुछ भी हो सकता है।


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