समाधान न होने से पलायन को मजबूर
जिम्मेदार बने मूकदर्शक
चित्रकूट, सुखेन्द्र अग्रहरि । जिले के किसानों के लिए खेती करना अब सिर्फ मेहनत का ही नहीं, बल्कि संघर्ष का भी विषय बन गया है। खेतों में फसलें लहलहाने से पहले ही बंदरों और नीलगायों का आतंक उन्हें तबाह कर देता है। भारतीय किसान यूनियन के जिला मीडिया प्रभारी देवेंद्र सिंह ने इस गंभीर समस्या पर जिला प्रशासन से जवाबदेही की मांग की है। बताया कि किसान एक तरफ प्राकृतिक आपदाओं से लड़ रहा है और दूसरी तरफ इन आवारा जानवरों से, लेकिन अफसोस कि प्रशासन इस मुद्दे पर पूरी तरह मौन है। वन विभाग, जिला पंचायत और ग्राम पंचायतकृतीनों एक-दूसरे पर जिम्मेदारी टाल रहे हैं। जब किसान अपने खेतों को बचाने के लिए बंदरों और नीलगायों को मारने की कोशिश करता है तो पुलिस उसे कानूनी कार्रवाई का डर दिखाती है। सवाल है कि आखिर
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किसानो के छतों में आतंक मचाते बंदर |
किसान करें तो क्या करें? अगर वह अपनी मेहनत की फसल बचाने के लिए संघर्ष करता है, तो उसे ही अपराधी बना दिया जाता है। वन विभाग की लापरवाही सिर्फ किसानों की समस्या नहीं बढ़ा रही, बल्कि जिले के जंगलों के अस्तित्व पर भी खतरा बन चुकी है। वन विभाग की नाक के नीचे से रोजाना हजारों कुंतल लकड़ी की तस्करी हो रही है, हरे-भरे पेड़ काटे जा रहे हैं। जंगल उजड़ रहे हैं, और इनका सीधा असर जंगली जानवरों के रिहायशी इलाकों की ओर पलायन पर पड़ रहा है। जंगल खत्म होंगे तो वन्य जीव भोजन की तलाश में गांवों और खेतों का रुख करेंगे, जिससे किसानों की मुश्किलें और बढ़ेंगी। किसानों राजकिशोर सिंह, संत गोपाल भारतीय, जयनारायण, साधो प्रसाद और विजय त्रिपाठी सहित सैकड़ों किसानों का कहना है कि अगर जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो जिले में हालात इतने बदतर हो जाएंगे कि किसानों को गांव छोड़कर पलायन करने पर मजबूर होना पड़ेगा। वहीं इस संबंध में जिम्मेदार से बात की कोशिश की गई पर बात नही हो सकी।
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