नवरात्रि में अष्टमी-नवमी का विशेष महत्व होता है. अष्टमी के दिन मां महागौरी और नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन किया जाता है, कुछ लोग सप्तमी तक व्रत रखते हैं और अष्टमी पर कन्या पूजन करने के बाद अपने व्रत का पारण करते हैं वहीं कुछ अष्टमी तक व्रत रखने के बाद नवमी तिथि पर कन्या पूजन करते हैं, इस वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 04 अप्रैल को रात 08 बजकर 12 मिनट पर होगी। वहीं, समापन 05 अप्रैल को शाम 07 बजकर 26 मिनट पर होगा। 05 अप्रैल शनिवार को चैत्र नवरात्र की दुर्गा अष्टमी मनाई जाएगी। चैत्र नवरात्र की दुर्गा अष्टमी पर दुर्लभ शिववास योग का संयोग बन रहा है। शिववास योग निशा काल में है। दुर्गा अष्टमी पर सुकर्मा योग एवं पुनर्वसु नक्षत्र का संयोग है। इन योग में मां दुर्गा की पूजा करने से साधक के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होगी। नवरात्रि की अष्टमी पर कन्या पूजन का विशेष महत्व माना जाता है। अष्टमी पर कन्याओं को भोजन कराने से
साधक की मनोकामना पूरी होती है, इस वर्ष 5 अप्रैल शनिवार को नवमी तिथि रात 7 बजकर 26 मिनट पर शुरु हो रही है। इसका समापन 6 अप्रैल रविवार को रात 07 बजकर 22 मिनट पर होगा । ऐसे में 6 अप्रैल को रामनवमी मनाई जाएगी। नवमी तिथि को पुष्य नक्षत्र सुकर्मा योग रहेगा। नवरात्र में कन्या पूजन का बहुत महत्व हैै 2 वर्ष से 10 वर्ष तक की कन्याओं के पूजन का महत्व है। 2 साल की बच्ची कुमारी, 3 साल की त्रिमूर्ति, 4 साल की कल्याणी, 5 साल की रोहिणी, 6 साल की कालिका, 7 साल की चंडिका, 8 साल की शाम्भवी, 9 साल की दुर्गा और 10 साल की कन्या सुभद्रा का स्वरूप होती हैं 9 कन्याओं को 9 देवियों के रूप में पूजा जाता है एक बालक बटुक भैरव के रूप में पूजा करने का भी विधान है और उनको भोग लगाकर दक्षिणा देने से देवी मां प्रसन्न होती हैै और भक्तों को वरदान देती है। व्रत के समापन पर हवन का खास महत्व है अग्नि के मध्यम से भोग का अंश देवी को चढ़ाया जाता है हवन करने से देवी मां प्रसन्न होती है मनोकामना पूर्ति, स्वास्थ्य लााभ, धन, यश का लाभ और शत्रु नाश होता है।
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