चित्रकूट ब्यूरो, सुखेन्द्र अग्रहरि : जिला मुख्यालय के शंकर बाजार स्थित स्वर्गीय काशी प्रसाद साहू धर्मशाला में साहू उत्थान समिति द्वारा साहू समाज की आराध्य माता कर्मा देवी की जयंती धूम धाम से मनाई गई। जिसमें कई प्रतियोगिताओ का भी आयोजन किया गया। जिसमें नृत्य, भाषण, मेंहदी, सामान्य ज्ञान, वाद विवाद जैसी महत्व पूर्ण प्रतियोगिताएं सम्मिलित रहीं जिसमें करीब एक सैकड़ा से ज्यादा साहू समाज के बच्चों ने प्रतिभाग किया यह आयोजन प्रतिवर्ष कराया जाता है इन सबके निर्णायक मण्डल की भूमिका में जनपद की प्रधानाचार्य कमला साहू और डाक्टर अर्चना साहू मौजूद रहीं। माता कर्मा बाई का जन्म वर्ष 1017 को उत्तर प्रदेश के ‘झांसी नगर‘ नामक स्थान पर रामशाह साहू के घर हुआ था। माता कर्मा बाई का विवाह पद्मा साहू के साथ हुआ था। ये मध्यप्रदेश के शिवपुरी के रहने वाले थे और ये तेल का भी व्यापार करते थे इनका बहुत बड़ा तेल का व्यवसाय था। कर्मा की चचेरी बहन धर्मा बाई का विवाह राठौर परिवार में हुआ था, ये राजस्थान में नागौर के रहने वाले थे। इन्होंने स्वयं अपने हाथों से भगवान श्री कृष्ण जी को ‘‘खिचड़ी‘‘ खिलाई थी, इस घटना को बाद में इनके उपासको ने ‘‘कर्मा बाई को खीचड़ो‘‘ कहा है। ऐसा मना जाता है कि कर्मा बाई के पति धनी होने की वजह से दूसरों को जलन होती थी इसलिए पद्मा साहू को फंसाने और उनके तेल व्यवसाय को ठप करने के लिए राजा नल के पुत्र ढोला ने आज्ञा दी कि राज्य के तेल के तालाब को पांच दिन में भरा जाएँ, पद्मा साहू दिये गये समय के पश्चात तालाब को तेल से भरने में असफल रहा। उसे सभी तेली समाज के समाने शर्मिन्दा होना पड़ा।
यह बात माता कर्मा बाई को पता चली तो उन्होंने अपने पति का कष्ट दूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में अपनी अंतरात्मा एक कर दी और इनकी भक्ती और श्री कृष्ण जी की माया से पूरा तालाब तेल से भर गया था। यह बात तुरंत ही सभी तेली समाज में फैल गई और सभी को एक बड़े संकट से छुटकारा मिल गया। इस दिन से ही कर्मा बाई को ‘‘माता कर्मा बाई‘‘ के नाम से जाना जाता है। तेल के इस तालाब को धर्मा तलैया कहा जाता है और यह कर्मा बाई का धार्मिक संकट है। राजा ढोला के बुरे बर्ताव और व्यवहार के कारण कर्मा बाई ने अपने पति से कहा कि अब हम इस राज्य के राजा के कष्टो को सहन नहीं कर सकते, यह स्थान शीघ्र ही छोड़ देना चाहिए। माता कर्मा बाई जगन्नाथपुरी में रोज सुबह-सुबह जल्दी उठकर बिना नहाए-धोएँ श्री कृष्ण जी की भूख मिटाने के लिए खिचड़ी बनाती थी और कृष्ण जी को बाद खिलाती थी। एक साधु ने माता कर्मा बाई को यह सब करते हुए देख लिया और उन्होंने कर्मा से कहा यह गलत है आपको ऐसा नहीं करना चाहिए पाँप लगता है। कर्मा बाई फिर रोज नहा कर खिचड़ी बनाने लगी। जिससे खिचड़ी पकाने में देरी हो जाती थी और श्री कृष्ण को खिचड़ी खिलाते समय ही मंदिर के द्वारा खुल जाते है। साधु ने जब द्वार खोलकर देखा तो श्री कृष्ण जी के मुख पर खिचड़ी लगी हुई थी। यह देखकर फिर साधु ने कर्मा बाई से कहा आप पहले जैसे खिचड़ी खिलाती थी वैसे ही बनाकर खिलाओ। इस दिन के बाद से ही श्री भगवान जगन्नाथ के मंदिर में सबसे पहले माता कर्मा बाई की खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। पिता राम साहू ने कर्मा बाई को साहू वंश सौंपा था और इनकी सबसे छोटी बेटी को राठौर वंश सौंपा था। राठौर वंश, राजपूत राठौड़ वंश से अलग है। इस कारण राठौर और साहू दोनों समाज को तेली समाज के वंशज कहा गया है। यही समाज कर्मा बाई के उपासक हूए है। कार्यक्रम के अध्यक्ष राजा साहू, उपाध्याय राजकुमार साहू, महामंत्री शारदा प्रसाद साहू, मंत्री उमाशंकर साहू, कोषाध्यक्ष सीतू साहू, ऑडिटर कुलदीप साहू, रमेश चन्द्र साहू, रोहित साहू, मट्टू साहू, सुधीर साहू, केशचन्द्र साहू, मनोज साहू, रंजीत साहू, अमित साहू, सुरेश साहू, लल्लू साहू, पत्रकार संजय साहू, पवन साहू सहित एक दर्जन सदस्य मौजूद रहे
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